ज्ञानावस्था की समस्त इकाईयों का मूल लक्ष्य केवल ब्रह्मानुभूति सहज प्रमाण ही है । ब्रह्मानुभूति ही सहअस्तित्व में अनुभव है ।
जीव और ज्ञानावस्था की इकाईयाँ जड़ तथा चैतन्य की संयुक्त अवस्था के रूप में जीवित और प्रकट हैं ।
जड़ ही विकासपूर्वक चैतन्य हुआ है । चैतन्य का तात्पर्य परमाणु का स्वयं में संवेदनशील व संज्ञानशील हो जाना ही है ।
जीवावस्था की इकाई में आशा का परिवर्तन तथा परिमार्जन ज्ञानावस्था की इकाई में आशा, विचार, इच्छा और संकल्प का परिवर्तन एवं परिमार्जन प्रसिद्ध है ।
प्रत्येक चैतन्य इकाई (चैतन्य परमाणु) अपने कार्यक्षेत्र सहित पुँजाकार में है ।
ज्ञानावस्था की प्रत्येक चैतन्य इकाई, परमाणु समूह से मुक्त, आशा, विचार, इच्छा तथा संकल्प युक्त है । इसलिए यह बंधन और मोक्ष का कारण है ।
आस्वादनापेक्षा बंधन की ओर एवं ब्रह्मानुभूति सहज जिज्ञासा मोक्ष की ओर है ।
प्रत्येक परमाणु ब्रह्म में ओत-प्रोत है, इसलिए संपूर्ण जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति ब्रह्म में संपृक्त, नियंत्रित, प्रेरित, क्रियारत एवं संरक्षित है । यही कारण है कि मानव अनवरत ब्रह्मानुभूति योग्य-अर्हता के लिए अभ्युदयशील है ।
आत्मा में ब्रह्मानुभूति, बुद्धि में आत्मानुभूति, चित्त में बुद्धि सहज अनुभूति, वृत्ति में चित्तानुभूति तथा मन में वृत्ति सहज अनुभूति क्षमता होने तक जागृति क्रम है । यह अनुभव समुच्चय है जो समत्व या सहज समाधि है ।
ब्रह्म प्राप्ति अप्राप्ति व अभाव के आरोप से मुक्त और नित्य वर्तमान है ।
प्रत्येक मानव इकाई में प्राप्ति-अप्राप्ति के अपेक्षाकृत विविधता प्रकट है-जो समाधान नहीं है ।