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इस धरती पर मानव अपनी परम्परा के रूप में प्रकाशित होने के पहले से ही यह धरती जीव-जानवर, वन-वनस्पति, कीड़े-मकोड़े, मृदा, पाषाण, मणि, धातु से समृद्ध रही है। मानव की वंश परम्पराएँ विविध भौगोलिक परिस्थितियों में आरंभ होकर स्वयंस्फूर्त कल्पनाशीलता और पहचानने की आवश्यकता व उत्साह के योगफल में सर्वप्रथम खाने-पीने योग्य वस्तुओं की पहचान, शरीर रक्षा क्रम में आवास पद्धति को अलंकार वस्तुओं को पहचानने की गवाही विगत से प्राप्त हो चुकी है। साथ ही मानव आरंभिक काल से ही भयत्रस्त होकर बचाओ आर्तनाद करता आया। यह दीनता और विपन्नता का द्योतक रहा है। यह मानव को स्वीकार नहीं हुआ। जैसे ही विज्ञान मानस मानव कुल में स्थापित हुई वैसे ही प्रकृति पर विजय पाने का, शोषण व प्रयास प्रक्रियाओं के रूप में क्रियान्वयन होते आया। शनै: शनै: प्रकृति पर विजय पाने की आवाज इस दशक में काफी हद तक दबी हुई दिखाई पड़ती है। इन दिनों जितने भी विज्ञान सभायें होती है उनमें प्रकृति के विजय के स्थान पर प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन क्रिया के अर्थ में शब्द का प्रयोग करते है। यही विज्ञान कुल अर्थात् विज्ञान परम्परा में आवाज का बदलाव है। यह बदलाव होते हुए कार्य विधि में धरती के साथ अपराध क्रिया का तादाद बढ़ गई।

विजय पाने का अर्थ सर्वविदित है ही। आदिकाल से बाघ व भालू पर विजय पाने की घटना उनके नाश के साथ ही रही है। इसी प्रकार प्रकृति पर भी विजय पाने का अर्थ प्राकृतिक वैभव को नाश करने अथवा विध्वंस करने को मानव तत्पर हुआ। इसमें काफी हद तक मानव की हविस पूरी हुई। हविस का तात्पर्य अपनी मनमानी विधि से सुविधा संग्रह, भोग, अतिभोग की ओर बढ़ते जाने से है। अधिकांश लोगों को इस दशक में समझ में आया है। इसके साथ यह भी समझ में आया है कि सुविधा संग्रह का तृप्ति बिन्दु नहीं है। इस धरती में जो सम्पदायें वन-खनिज के रूप में रही हैं। उसी का दोहन (शोषण) व छीना-झपटी के रूप में देखा जा रहा है। वन का क्षय होते ही आया। इस शोषण विधा में यह भी देखने को मिला कि शासन तंत्र द्वारा प्राकृतिक सम्पदा के शोषण को वैध मानते है और अन्य व्यक्तियों द्वारा प्राकृतिक सम्पदा के शोषण किये जाने पर उसे अवैध मानते हैं। इसी बीच द्रोह-विद्रोह घटनाएँ घटित होते ही आयी आज तक की सभी घटनाएँ चाहे वैध रही हो या अवैध रही हो सजी धजी इस धरती को तंग करती हुई एवं धरती तंग होती हुई देखने को मिली। धरती गर्म होती हुई, समुद्र का जल बढ़ता हुआ, सर्वाधिक जगह में वर्षा कम होती हुई, ठंड कम होती हुई, गर्मी बढ़ती हुई, नदी नाले सूखते हुए, जल स्तर धीरे- धीरे नीचे जाता हुआ, गर्मी के दिनों में सर्वाधिक कुआँ तालाब सूखता हुआ देखने को मिल रहा है। यह बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक के उत्तरार्ध की स्थिति हैं।

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