1. राजनेता के रूप में
2. कलाकारों के रूप में
3. डाका-डकैती और इन्द्रजाल जादू के रूप में देखा गया।
इन सभी की पहचान बनाने के काम में माध्यम निष्ठा से लगे हुए है, माध्यमों का खाका आज की स्थिति में रेडियो, टेलीविजन, पत्र-पत्रिका, उपन्यास विधायें है। इससे पता लगा कि यश पाने की वस्तु क्या है। यश का मतलब आज के कलाकारों का कथन जो हम सुनते है लोग जो चाहते हैं अथवा लोक शक्ति के अनुसार गति है। सम्भाषण करते हैं प्रदर्शन करते हैं हर राजनेता का कथन-हम जनसेवक हैं जबकि इन किसी में पद व पैसे के अतिरिक्त लक्ष्य दिखाई नहीं देता। डाकूओं का कथन यही है शासन-प्रशासन से किया गया अत्याचार ही डाकूओं को जन्म देता है। सांस्कृतिक रूढ़ि और समुदाय मानसिकता अपना पराये का दीवाल बनाते ही आया।
ये सब दिशा विहीन राजनीति, प्रयोजन विहीन शिक्षा नीति, रहस्यमयी धर्मनीति (रहस्यमयी ईश्वरता) प्रधानत: हर मानव को अपनी मानसिकता को सार्वभौम रूप देने में असफल रही है। इस समय में इस धरती पर छ:-सात सौ करोड़ आदमी होने का आँकड़ा है। इन छ:-सात सौ करोड़ आदमी में सर्वाधिक लोगों के अनुसार 90% आदमी इन सभी विधाओं में स्पष्टता, निश्चयता व सार्थकता को समझना चाहता है और ऐसी सार्वभौम समझदारी को जीवन शैली और दिनचर्या में पहचानना व मूल्याँकन करना चाहते हैं। इस सामान्य विवेचना के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि हर मानव धरती और धरती में पर्यावरण के संतुलन के पक्ष में व असंतुलन के विपक्ष में है।
इतने लम्बे अरसे की मानव परम्परा अभी तक धर्मगद्दी, शिक्षागद्दी, और राज्यगद्दी में कल्याणकारी दिशा व लक्ष्य को पहचान नहीं पायी, इन तीनों विधाओं में होने वाली प्रवृत्तियों व कार्यों के पक्ष में अथवा कार्यों के रूप में शिक्षा गद्दी के कार्यकलाप को देखा जा रहा है। अतएव इन चारों प्रकार की परम्परायें अपने आप में भ्रष्ट हो चुके हैं। हर मानव इनमें परिवर्तन चाहता है। इसकी आपूर्ति के लिए ही अथवा इस ओर प्रवर्तित करने के लिए ही इस व्यवहारात्मक जनवाद को प्रस्तुत किया है। जिसमें
1. धर्म - मानव धर्म स्पष्ट होने
2. शिक्षा - मानव चेतना मूल्य शिक्षा में पारगंत प्रमाण होने