इसमें से कुछ ऐसी तकनीकी है जो मानव का शोषण सर्वाधिक करता है। तकनीकी विधि से अनेक पुर्जों से एक यंत्र तैयार होता है ऐसा मान लिया गया है। उसी क्रम को मानव के शरीर के साथ भी ऐसा ही सोचना शुरू किया। इसी क्रम में हड्डी खराब होने पर हड्डी बदल देंगे - गुर्दा खराब होने पर गुर्दा बदल देंगे। इसी प्रकार हृदय, आँख, नाक, चमड़ा, रक्त के संबंध में भी सोचा गया। इसको क्रियान्वयन करने के क्रम में मानव अपने प्रयासों से किसी भी अंग अवयवों के हड्डी, मांस और स्नायुओं को बनाने में असमर्थ रहा। इन चीजों को बदला जा सकता है। यह तकनीकी कर्माभ्यास पूर्वक कुछ लोगों को करतलगत हुई। विगत दशक और इस दशक में बीती हुई पाँच वर्ष में अनेकानेक जनचर्चा पत्र पत्रिका की सूचना दूरदर्शन साक्षात्कारों के रूप में देखा गया सुना गया कि किसी का गुर्दे, किसी का आँख, किसी के कुछ और अंगों को कुशल शल्य चिकित्सक अपहरण कर लिया। इन खबरों को सुनने से जो प्रभाव पड़ा कि मूलत: शल्य चिकित्सा विधि शुभ के लिये ही आरंभ हुई है किन्तु वर्तमान में अशुभ का भी कारक बन चुकी है। यदि ऐसी घटनाओं में वृद्धि हो जाये तो कौन किसके पास बेहोशी में होकर ऑपरेशन कराना चाहेगा। बेहोशी के अनन्तर मानव के किसी भी अंग अवयव को काँटछाँट कर अलग कर सकते है। उसके बाद ऑपरेशन जिसका हुआ है वह चाहे बचे चाहे मरे। इन स्थितियों में हम आ चुके हैं।
इसी प्रकार इसके आगे दवाइयों का संसार है, जो अत्याधुनिक विधि से बनाई जातीं है। उनसे जितना लाभ होता है इससे अधिक परेशानी होने की सूचना, उन्हीं दवाई से चिकित्सा करने वाले स्वयं बताया करते है। ये सब होते हुए भी ऐसी अत्याधुनिक दवाइयाँ लोकमानस के लिए आकर्षण बनी हुई है। जहाँ तक रोग की बात है अत्याधुनिक शरीर शास्त्र का अध्ययन करने के अनुसार व्यवस्थागत रोगों यथा गृधसी, श्वास, भुजस्तंभ, कटिग्रह, स्तंभगत, मधुमेह, रक्तचाप जैसे रोगों का कारण अज्ञात एवं असाध्य (ठीक न होने वाला) रोग बतलाते हैं फिर भी हर चिकित्सक कोई न कोई दवाइयों को देता ही रहता है।
इसी के साथ और इंजीनियरिंग तकनीकी-प्रौद्योगिकी के माध्यम से धरती, जल और हवा पर अनेकानेक यंत्र संचारित हैं ही। इस धरती के प्रभाव क्षेत्र से दूर-अति दूर में इस धरती के गति से ताल मेल रखता हुआ उपग्रहों को स्थापित कर दूरसंचार और दूरदर्शन संबंधी गति को तकनीकी सम्बद्ध प्रौद्योगिकी क्रिया विधि से इस धरती पर सफल बना चुके। ऐसे ही बड़े-बड़े यंत्रों की सहायता से इस धरती के पेट को भले प्रकार से क्षत-विक्षत किये जा रहे हैं। इस दशक तक इस