इस धरती पर इस समय दृश्यमान स्थिति के अनुसार हर मानव सुविधा, संग्रह में प्रवृत्तशील है और हर परम्परा व माध्यम इसी का प्रवर्तनशील है। राज नेताओं को निश्चित दिशा और राजनैतिक सार्वभौमता की कोई पहचान आज तक नहीं हो पायी है। अभी तक किसी देश के बुद्धिमानों के अनुसार 3000 वर्ष का इतिहास बताया जाता है किसी देश में 5000 वर्ष बताया जाता है। कुछ देशों में लाखों करोड़ों वर्ष का होना बताया जाता है। इन सभी इतिहासों को तर्क संगत बनाने के लिए विगत की किताबों और पुरातत्व को अपनाया गया है। पुरातत्व को भूमिगत, समुद्रगत व स्थलगत भी होना पाया गया है। इस प्रयास में मानव सभ्यता के आरम्भ काल को पहचानने की मंशा रहती है। इस उपक्रम के साथ प्राचीन काल शल्यों को उसकी रचना के विश्लेषण के अतिरिक्त इस धरती को स्थायी वस्तु जो कोषा के रूप में परिवर्वित होने के लिए प्रवृत्ति को रखता है उसका नाम कार्बोनिक है। उसके अर्थात् उस शैल्यों में निहित कार्बोनिक शैल्यों की विधा विद्युतीय प्रभावीकरण विधि से प्राप्त कर लिया है उसी से पुराने पत्थर की आयु का पता लगाते है। इस प्रक्रिया से बड़े बड़े पहाड़ों की आयु का अनुमान किया जाता है। विगत के अध्ययन क्रम में बीती हुई घटनाओं के क्रम का अनुमान करने के क्रम में यह भी उल्लेखित है कि यह धरती कई बार पलट चुकी है। इस मुद्दे पर कुछ ऐसे जीव जानवरों का शल्य मिला है। जिसकी परम्परा इस समय में देखने को नहीं मिलती है। इसी आधार पर उस समय में यह धरती पलटने के पहले समय में ऐसे जीव जानवर रहे है। धरती पलटने के साथ वे सब शल्य बन चुके है। ऐसा शल्य विशेषकर कोयला खदानों में मिलता है और वह गहरी खुदाई के क्रम में कहीं-कहीं मिलता। ऐसे साक्षी को इस धरती के बुद्धिमान बहुत सारा एकत्र किये इस उपक्रमों के साथ पत्थरों व शल्यों की जो भी आयु निर्धारण करते है। वह तो हमें मिली हुई वस्तुओं के आधार पर हमारा अनुमान होता है। इन सब वस्तुओं के आयु निर्धारण के साथ-साथ हमें कोई सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक ध्रुव मिलता नहीं है। इस वर्तमान में हर सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा यही है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक गतियों में साम्यरसता, समाधान, निश्चित गम्यता जिससे सुन्दर सामाजिकता सिद्ध हो सके ऐसी गम्यता के लिए निश्चित गति आवश्यक है। उल्लेखनीय बात व तथ्य यही है। आर्थिक विधा हर मानव में सुविधा संग्रह के अर्थ में स्पष्ट है राजनैतिक विधा यश, पद, धन के चंगुल में फंसा है। सांस्कृतिक विधा समुदाय मानसिकता व रूढ़ियों के चगुंल में भली प्रकार से फंस चुकी है यहाँ यह भी स्पष्ट कर दें कि यश का तात्पर्य बहुत लोग जिनका चेहरा-मोहरा को भली प्रकार से पहचानते है। जिसे बच्चे-बच्चे जानते है ऐसा चेहरा मोहरा नाम से पहचानने वाली घटना को हम तीन क्रम में देखते है :
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