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अंतर्विरोध सविपरीत परिस्थितियों को मानव में निहित संवेदनशीलता अपेक्षित संभावित संज्ञानशीलता को विपरीत ध्रुवों के रूप में देखा गया। यह हर व्यक्ति अपने में और अन्य व्यक्तियों में देखने की व्यवस्था सदा सदा समीचीन है। समीचीनता का तात्पर्य सहजता से सुलभ होने की संभावना से है अथवा पास में है और प्रयोग करना ही एक मात्र कार्य है। संज्ञानशीलता विधि से ही हर व्यक्ति समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व को सर्वशुभ के अर्थ में स्वीकारता है जबकि संवेदनशीलता विधि से शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधेन्द्रियों के अनुकूलता, प्रतिकूलता क्रम में ही संग्रह सुविधा भोग अतिभोग की ओर ग्रसित होता हुआ समुदायों, परिवारों और व्यक्तियों को देखा गया है। बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक में भारत में सर्वेक्षण विधि से निरीक्षण करने पर पता चला है कि सौ व्यक्तियों को हम पूछते है कि सर्वशुभ होना चाहिये कि नहीं ? और आगे विचार और कार्यक्रम होना चाहिये कि नहीं ? ऐसा पूछने पर 90 से अधिक लोग तुरंत स्वीकारते है सर्वशुभ होना चाहिये। विचार और कार्यक्रम होना चाहिये या नहीं - इस मुद्दे पर प्रतिशत निकालने पर पता चला 80 प्रतिशत होना चाहिये, इस बात को स्वीकारते हैं।

जब दूसरे प्रश्न को दो भागों में बाँटते है - कार्यक्रम होना चाहिये कि नहीं, तब इस स्थिति में 60 प्रतिशत लोग सहमत हो पाते हैं। बाकी लोगों में आगे बिना पूछे ही अधिकांश लोग अपने में से बताते है कि ये हो ही नहीं सकता है कर ही नहीं सकते हैं। ऐसे ही किसी किसी से सुनने को मिलता है वह भी विशेष कर अध्यात्मवादी खेमे में जीते हुए लोग कहते हैं कई अवतार हो गये कई महापुरूष हुए, सिद्ध हुए, तपस्वी हुए, चमत्कारी हुए, यति-सती हुए, ईश्वर दूत और ज्ञानी हुए ऐसे अनगिनत लोग होते हुए अभी तक सर्वशुभ घटित हुआ नहीं है। भौतिकवादी खेमे के माहिरों से पूछने पर यही कहते है ये सब सोचने की कहाँ जरूरत है। मोटी तनख्वाह वाला नौकरी, चमकता हुआ गाड़ी, सर्व सुविधा पूर्ण महल और जो इच्छा हुआ वो सब भोगने को ही सुख का स्त्रोत बताते हैं। सबको आप जैसी सुविधा नहीं मिलने पर छीना झपटी करेंगे ये पूछने पर वे कहते है संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। उसे नाम देते है लाइफ इज स्ट्रगल। साथ में यह भी बताया करते है कि बेटर लाइफ के लिये स्ट्रगल आवश्यक है। संघर्ष और उससे बनने वाले परेशानियों की ओर ध्यान दिलाने पर बताते है कि प्रकृति में ही अंतर्द्वंद्व है इसलिए संघर्ष करना स्वाभाविक है। संघर्ष की अन्तिम मंजिल भी यही बताते हैं जो ज्यादा मजबूत होता है वही अस्तित्व को बनाए रखने में समर्थ होता है। ये सब अधिकांश मेधावियों को विदित है ही। शुभेच्छा से विज्ञान को जो अध्ययन किये हुए लोग और विज्ञान पढ़ा हुआ युवा पीढ़ी विज्ञान की गति किसी काला दीवाल के सामने पहुँचना देख चुके है। ऐसे लोग तत्काल सर्वशुभ के लिये

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