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गति है, अथवा अक्षुण्ण गति है अथवा निरन्तर गति है। गति सदा सदा से मानव परम्परा के रूप में ही होना सम्भावित है। समझदारी पूर्ण परम्परा ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का एक मात्र उपाय है। दूसरी किसी विधि से व्यवस्था की सार्वभौमता और समाज की अखंडता को अभी तक स्पष्ट नहीं कर पाये। मानव में समझदारी का स्त्रोत सर्वसुलभ होना ही है। ऐसे कार्य में आप हम सभी को भागीदार होने की आशा अपेक्षा और कर्तव्य है। इसी आशय को सार्थक संवाद में, अवगाहन में लाने का यह प्रयास है।

अखंडता और सार्वभौमता के वर्चस्व का धारक वाहक केवल मानव ही है। ऐसी अखंडता और सार्वभौमता की पहचान के पूर्व जानने मानने के अर्थ को स्पष्ट कर लें। मानव में ही जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की क्रियाकलाप परम्परा में स्पष्ट हो जाती है या प्रमाणित हो जाती है।

जाने बिना मानना रूढ़िवादिता के रूप में स्पष्ट है। जानते हुए नहीं मानना एक अन्तर्विरोध का स्वरूप होना पाया गया है। इसलिए यह समझ में आता है जानना, मानना मानव परम्परा में, से, के लिए एक अनिवार्य क्रिया है। जानना मानना ही प्रमाण का आधार बनता है। प्रमाण क्रियान्वयन होने की स्थिति में पहचानना, निर्वाह करना भी होता है। प्रमाण किसके साथ प्रस्तुत होना है इस का पहचान होना आवश्यक है। इस विधि से सर्वमानव मानव के साथ ही जानने मानने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। यह प्रमाण समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व ही होता है जिसके फलस्वरुप में सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द होना पाया जाता है। अनुभव धारक ही वाहकता का स्त्रोत है। अनुभवमूलक विधि से ही अखंडता और सार्वभौमता का प्रमाण होना पाया जाता है। इसकी स्वीकृति अनुभव के पहले से ही मानव में सर्वेक्षित हुई है। इसे प्रत्येक व्यक्ति कर भी सकते है। हर निश्चयन निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण की सहज प्रक्रिया से ध्रुवीकृत होता है और निश्चित होता है। यह निश्चित बात है कि निश्चयता में ही मानव जीना चाहता है। अनिश्चयता मानव को स्वीकृत नहीं है। भ्रम की स्थिति में भी निश्चयता की अपेक्षा मानव में, से, के लिए निहित रहती ही है। निश्चयपूर्वक ही मानव धरती पर चल पाता है। हवा पर चलता है और पानी पर चलता है। इसी प्रकार अन्य गतियों में भी निश्चयता की अपेक्षा बनी हुई है। निश्चयों के साथ ही जानने मानने का प्रयोजन प्रमाणित होता है। धरती पर चलने के पहले से ही धरती की स्थिरता धरती पर निहित मानव को ज्ञात रहती है। प्रयोग से सुदृढ़ होती जाती है। इसी प्रकार हवा पर, जल पर चलने के तरीकों को मानव अपना चुका है। हवा पर चलने के लिए

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