हवा की सांद्रता को बढ़ाने और सांद्रता की अपेक्षा में यान गति को अधिक बनाए रखने के उपायों को मानव अपना चुका है। इन उपायों के साथ साथ मानव वायुयान तंत्र को सर्वसुलभ कर चुका है। प्रमाणित कर चुका है। इसी प्रकार जल सान्द्रता की अपेक्षा में जलयान गतियों की स्थिति को बनाए रखने के उपायों को मानव अपना चुका है। जल सान्द्रता पर तैरने का तरीका, वस्तु और आकार प्रकार विधियों में पारंगत हो चुका है। ये सब सुनिश्चयता के आधार पर ही सुलभ हुआ है। इस प्रकार निश्चय के आधार पर स्थिति गतियाँ प्रयोजनशील होना सार्थक होना घटित हो चुकी है। यह भी स्थिरता निश्चयता को अपनाने की व्यवस्था प्रचलित है।
संवाद में स्थिरता निश्चयता को निरूपित करना मानव परम्परा के लिए एक आवश्यकता है। स्थिरता क्रिया की निरन्तरता के रूप में पहचानी जाती है, निरन्तरता ही स्थिरता है। हर क्रिया अपने में निरन्तर है ही, उसके साथ यह भी समझने की आवश्यकता है कि हर एक एक अपने यथास्थिति के अनुसार स्थिर है। इसका प्रमाण निश्चित आचरण है। व्यापक वस्तु भी स्थिर रूप में ही व्याख्यायित होती है। व्यापक वस्तु अपने में पारगामी, पारदर्शी के रूप में वैभवित है वैभव नित्य है और स्थिर है। इसका दृष्टा केवल मानव अथवा सर्वमानव है। इसी तथ्यवश हर इकाई व्यापक में डूबी, भीगी, घिरी रूप में नित्य और स्थिर है। इस प्रकार सहअस्तित्व में स्थिर और निश्चयता के रूप में होना तर्क और संवाद प्रक्रिया से स्पष्ट हो जाता है। इसे मानव जानने मानने में समर्थ है। इसे ध्यान में रखते हुए अथवा इस नजरिया से सम्पूर्ण वस्तुओं का पद और अवस्था, यथा स्थिति और वैभव को जानना मानना सहज है सुलभ है। सहज सुलभ के रूप में जानने की इच्छा हर मानव में है ही।
व्यापक वस्तु को इस तरीके से समझना संभव हो गया है, कि हर परस्परता के बीच निश्चित दूरियाँ होती ही है। इस दूरी की परिकल्पना और अनुभव होता है। यही व्यापक वस्तु है क्योंकि हर परस्परता के बीच दूरी के रूप में दिखाई पड़ने वाली वस्तु सभी परस्परता में एक ही है। जैसे दो आदमियों की परस्परता में, दो जानवरों की परस्परता में, दो झाड़ों की परस्परता में, दो प्राणकोषाओं की परस्परता में, दो अणुओं की परस्परता में, दो परमाणु अंशों की परस्परता में, दो ग्रह गोलों की परस्परता में, अनेक ग्रह गोलों की परस्परता में, आकाशगंगाओं की परस्परता में यही व्यापक वस्तु समझ में आती है। व्यापक का मतलब सर्वत्र एक सी विद्यमानता है। ऐसी व्यापक वस्तु अपने में पारगामी, पारदर्शी के वैभव सम्पन्न है, क्योंकि परस्परता में एक दूसरे को पहचानना संभव है ही। इसी प्रकार सभी इकाइयों में पारगामी होना हर वस्तु ऊर्जा सम्पन्न होना