1.0×

सुख शान्ति का अनुभव, समाधान समृद्धि अभय (वर्तमान में विश्वास) के साथ सुख, शान्ति, संतोष का अनुभव होना पाया जाता है। समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणों का अनुभव सुख, शांति, संतोष, आनन्द होना पाया जाता है। धर्म को सुख रूप होना पाया गया है और राज्य को समाधान, समृद्धि, अभय स्वरूप बोलना ही बना रहता है। जो कि सहअस्तित्व का वैभव होना पाया जाता है। सहअस्तित्व में मानव वैभव समाहित रहता है यह जनसंवाद के लिए सहज रूप में प्रासंगिक है। यह प्रसंग पूरा सहअस्तित्व की अभिव्यक्ति है, सम्प्रेषणा है, और प्रकाशन है। सहअस्तित्व के अतिरिक्त प्रकाशन का आधार ही नहीं है। इसलिए हम मानव सार्थक संवाद पूर्वक समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूपी तथ्यों को परस्परता में बोधगम्य, अध्ययन गम्य और कार्य-व्यवहार आचरणगम्य होने के अर्थ में सार्थक होना देखते है। इसे हर समझदार नर-नारी सार्थक बनाने योग्य है ही। समझदारी का दावा किसी न किसी विधि से हर मानव करता ही है। समझदारी का प्रमाण मानवाकांक्षा रूपी अथवा मानव लक्ष्य रूपी समाधान समृद्वि अभय सहअस्तित्व ही है। इसके आधार पर मानव का वैभव धर्म, अर्थ और राज्य का संयुक्त रूप में वैभवित होना सहज है।

वैभव के मूल में समझदारी और जागृति ही अति प्रमुख स्त्रोत है। यह सार्थक संवाद के लिए अनुपम मुद्दा है। जागृति और समझदारी अविभाज्य है। समझदारी अपने में ज्ञान, विज्ञान, विवेक के रूप में कारगार होने की स्थिति चर्चा में आ चुकी है। ज्ञान, विज्ञान, विवेक का संयुक्त नाम है समझदारी। विवेक और विज्ञान के मूल में ज्ञान ही प्रधान वस्तु है। ज्ञान अपने स्वरूप में सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति है। ज्ञान होने के लिए ज्ञाता की पहचान होना जरूरी है। ज्ञाता अपने स्वरूप में जीवन होना पाया जाता है। जीवन अपने स्वरूप में गठनपूर्ण परमाणु अक्षय बल अक्षय शक्ति सम्पन्न है। जो आशा, विचार, इच्छा, संकल्प और प्रमाणों को प्रमाणित करने योग्य क्षमता सम्पन्न है। यही अक्षय शक्ति है। इसी क्रम में अनुभव बल, बोधबल, साक्षात्कार बल, तुलन बल, आस्वादन बल के रूप में परीक्षित हो चुके है। ये पांचों बल प्रत्येक मानव जीवन में गवाहित होते है। आस्वादन ज्ञान मूलक विधि से संबंधों में निहित मूल्यों और मूल्यांकन के रूप में फलत: परस्पर तृप्ति के रूप प्रमाणित होना पाया जाता है। यह सब अपने अपने में गवाहित हैं। आस्वादन की क्षमता निरन्तर बनी ही रहती है। इसी प्रकार साक्षात्कार, बोध, अनुभव में भी निरन्तरता का होना देखा गया है। मूलत: अनुभव सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में सम्पन्न होता है। इसलिए सहअस्तित्व को परम सत्य के रूप में पहचाना गया है। इसकी निरन्तरता अर्थात् अनुभव की निरन्तरता सदा बनी रहती है सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व निरन्तर है ही। इसे हर

Page 47 of 141
43 44 45 46 47 48 49 50 51