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क्रियाशीलता के रूप में प्रमाणित है, इसीलिए व्यापक वस्तु का नाम साम्य ऊर्जा भी है, ऊर्जा सम्पन्नता का फलन है बल सम्पन्नता और क्रियाशीलता। क्रियाशीलता श्रम, गति, परिणाम के रूप में विकासक्रम में स्पष्ट है। हर विकसित पद गठनपूर्ण परमाणु के रूप में पहचाना गया है। जीवन पद यही है। चैतन्य इकाई यही है। विकास क्रम में परमाणु, अणु, अणुरचित रचना और प्राणकोषा, प्राणकोषाओं के रूप में रचित रचना दृष्टव्य है। इसका अध्ययन मानव ने किया है, या करना चाहता है। साथ ही जीवन क्रियाकलाप जब तक शरीर को जीवन मानता रहता है, तब तक भ्रमित रहना स्वाभाविक है। जीवन और शरीर का स्पष्ट अध्ययन होने के उपरान्त जागृति का प्रमाण होना पाया जाता है। जागृति जीवन की स्वयंस्फूर्त अभीप्सा है। अभीप्सा का तात्पर्य अभ्युदय सम्पन्नता से है। अभ्युदय का तात्पर्य सर्वतोमुखी समाधान से है। सर्वतोमुखी समाधान सहअस्तित्व सहज और जीवन सहज दर्शन व प्रमाण है। ऐसा दर्शन जानने मानने के रूप में पहचाना गया है। जानने मानने वाली इकाई मानव ही है। इस प्रकार जानना मानना समझदारी के अर्थ में विज्ञान और विवेक के रूप में प्रमाणित होना पाया जाता है। ज्ञान, विज्ञान, विवेक की सार्थकता की चर्चा पहले हो चुकी है। समझदारी ही ज्ञान है। यह सब शिक्षा विधि से बोधगम्य होना पाया जाता है। अनुभवमूलक विधि से ही मानव सहज लक्ष्य और दिशा को निर्धारित करना सहज होता है। हर मानव अथवा हर नर-नारी लक्ष्य और दिशा को जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के लिए इच्छुक है। इसी कारणवश हर मानव अपने में समझदार होने के लिए आवश्यकता बनाये है।

समझदारी ध्रुवीकरण होना, समझदारी निश्चित होना अभी तक विचाराधीन रहा है। मध्यस्थ दर्शन, सहअस्तित्ववाद के अनुसार अस्तित्व दर्शन, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण के रूप में समझदारी ध्रुवीकृत हो जाती है। ध्रुवीकरण का तात्पर्य समझदारी का बोध और अनुभव होने से है। अध्ययनपूर्वक बोध होना, बोधगम्य समझदारी प्रमाणित करने के अर्थ में अनुभव होना पाया जाता है। इस विधि से प्रत्येक मानव अध्ययन पूर्वक समझदारी से सम्पन्न होना संभव हो गया है। इसे सर्वसुलभ करने के क्रम में यह व्यवहारात्मक जनवाद मानव के सम्मुख प्रस्तुत है।

व्यवहारात्मक जनवाद का तात्पर्य समझदारी पूर्ण विधि से संवाद पूर्वक व्यवहार को ध्रुवीकरण करने की सम्पदा का समावेश हो, और प्रमाणित हो। समावेश होने का तात्पर्य मानव सहज विधि से अनुभवगम्य होने से है और स्वीकृत होने से है। इस क्रम में सदा-सदा से मानव परम्परा

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