व्यक्ति सार्थक संवाद से बोध तक सार्थक होना संभव है। यह प्रक्रिया मानव में, से, के लिए परम आवश्यक है।
सत्य में अनुभूत होना अनुभव सहज प्रमाणों को प्रमाणित करना ही जागृति है यही परम सत्य है। सत्य की परिकल्पना, कल्पना मानव सुदूर विगत से करता ही आया है। सत्य की कल्पना शाश्वत, सुन्दर, कल्याण रूप में की गयी। कल्याण का तात्पर्य दुख, क्लेश व भ्रम मुक्ति है। सत्य की परिकल्पना दिया कि सत्य, शिव, सुन्दर, शाश्वत है, कल्याणकारी है और ज्ञान है। ज्ञान से ही दु:ख मुक्ति होने की चर्चा है। सत्य क्या है पूछने पर, मन वाणी से अगोचर बता दिया इसीलिये सत्य और ज्ञान को रहस्यमयी वस्तु मानते ही आये। रहस्यमयी मान्यता के आधार पर सत्य, धर्म वादग्रस्त होता रहा। धर्म के संदर्भ में धर्म के लक्षणों को बताकर उद्देश्य का आधार बताया। रहस्य से मुक्ति मानव की अपेक्षा बनी ही रही। सत्य धर्म न्याय की अपेक्षा मानव परम्परा में बनी ही रही, भले ही चिन्हित रूप में स्पष्ट नहीं हो पायी। न्याय न्यायालयों में भी चिन्हित नहीं हो पाया। अन्ततोगत्वा फैसले को न्याय अभी तक हम मानव मानते चले आये हैं।
मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद के नजरिये में हम मानव इस तथ्य को चिन्हित रूप में समझ सकते है। मानव परम्परा में और नैसर्गिक प्राकृतिक परम्परा में अच्छी तरह से प्रयोग कर सकते है। प्रमाणित कर सकते हैं। प्रमाणित होना ही मानव परम्परा का सम्मान है। मानव ही न्याय धर्म सत्य प्रमाणित करने योग्य इकाई है। सार्थक संवाद के लिये सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व को समाधान रूप में पहचानने के उपरान्त न्याय, धर्म, सत्य ही सार्थक संवाद का आधार बन जाता है।
सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, दृष्टा पद प्रतिष्ठा का द्योतक है। जीवन ज्ञान स्व और सर्वस्व को प्रमाणित करने की प्रतिष्ठा है। स्व अपने आप में जीवन इकाई के रूप में प्रतिष्ठा है। यही चैतन्य इकाई है। यही गठनपूर्ण परमाणु है यही अक्षय बल, अक्षय शक्ति सम्पन्न इकाई है। रासायनिक भौतिक वस्तुओं से रचित प्राणकोषा व प्राणकोषा से रचित सप्त धातु रचित शरीर जिसमें समृद्ध मेधस तंत्र का होना पाया जाता है, को संचालित करते हुए जागृति को प्रमाणित करना ही जीवन का उद्देश्य है। इस क्रम में मानव परम्परा सत्य कल्पना, आकांक्षा और सत्य के प्रति आश्वस्त होने का प्रयास मानव कुल में प्रचलित रहे आया। क्रम से आकांक्षाएं विचारों में, विचार तर्क में, तर्क के अनंतर आस्था में प्रवृत होता ही आया है।