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ऋतु असंतुलित होने से निश्चित भूक्षेत्रों में होती हुई फसल चक्र बिगड़ने से कृषि के प्रति उदासीनता छा गई अथवा कृषि का व्यापारीकरण हो गया। कुछ लोग अभी भी कहते हैं कृषि उद्योग। विचारणीय मुद्दा यही है कृषि में मानव का सहज श्रम, धरती की उर्वरता, ठंडी, गर्मी, पानी का संयोग और हवा बयार के संयोग से फसल होते देखा गया। ऐसे पावन कृत्य धीरे धीरे उदासीनता के पक्ष में हुए।

अन्ततोगत्वा सर्वाधिक कृषक कृषि से विमुख होने के लिए परिस्थिति बाध्य हो गये। इन तथ्यों को सर्वेक्षण पूर्वक पता लगा सकते हैं। मुख्य मुद्दा यही हुआ कृषि मानव के लिए प्रथम आवश्यकता है कि नहीं? इस पर सार्थक संवाद होना है। यदि हाँ, तो आज की स्थिति पर सफलता का ताना बाना क्या रहेगा, कैसे रहेगा, इसका परिशीलन होना परम आवश्यक है।

आवश्यकता पर जब नजर डाली गयी कृषि सर्वप्रथम आवश्यकता है। मानव कुल को सर्वप्रथम आश्वासन, इस धरती पर कृषि में सफल होने के आधार पर ही घटित हुई है। आज भी कृषि उत्पादन सर्वश्रेष्ठ सर्वाधिक उपयोगी है। इसलिए इसकी परम आवश्यकता है। कृषि सम्पदा अपने में आश्वस्त रहने के लिए अर्थात् कृषक आश्वस्त विश्वस्त रहने के लिए धरती के साथ उर्वरकता, जल संसाधन, बीज परम्परा और ऋतु कालीन कीट नियंत्रण, औषधियों का ज्ञान और कर्म अभ्यास सम्पन्न रहना आवश्यक है। तभी कृषक कृषि करने के विश्वास को बनाए रख पाता है। आज की स्थिति में मानव लाभकारिता के आधार पर कृषि कार्य करने की सोचता है। जबकि कृषि समृद्धिकारी है। इसके आधार पर कृषि को पहचानने की आवश्यकता है। कृषि को लाभ हानि मुक्त समृद्धकारी वस्तु के रूप में स्वीकारने की जरूरत है।

कृषि के साथ पशु पालन एक अनिवार्य कार्य है साथ में अविभाज्य भी है। इस पर भी विधिवत जनचर्चा और परामर्श की आवश्यकता है। पशुपालन धरती की उर्वरकता को संतुलित बनाए रखने का सर्वोपरि उपाय है अथवा अंग है। पशुओं के मल-मूत्र द्वारा सर्वाधिक श्रेष्ठतम विधि से धरती को उर्वरक बनाना सर्वाधिक लोगों को विदित है इससे अच्छी उपज और किसी उर्वरक से नहीं है। इसी के साथ साथ दूध, घी भी उपलब्ध होना एक सहज उपलब्धि है। यह मानव के आहार पदार्थों में सर्वश्रेष्ठ और उपयोगी माना गया है निरीक्षण, परीक्षण पूर्वक जाना भी गया है। परिश्रम के लिए भी जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका को, उपयोगिता को मानव पहचान लिया, इस प्रकार पशुपालन का बहुमुखी उपयोग सुस्पष्ट होता है। पशुओं के मृत्यु होने के उपरान्त भी हड्डी धरती की उर्वरकता के लिए महा-उपयोगी, चमड़े मानव के पदत्राण अर्थात् जूते के रूप में

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