उपयोगी, झोले आदि के रूप में उपयोगी होना मानव पहचान लिया है। इस तरह पशुपालन एक सार्थक परम्परा है। इसके महत्व को अनदेखी किये जा रहे हैं इससे मानव और धरती क्षतिग्रस्त होना स्वाभाविक है।
मानव अपने को सदा-सदा कृषि कार्यपूर्वक अन्न समृद्धि को अनुभव करता रहा। आज भी यह मुद्दा आदिकाल के अनुसार ही है। इसको जनचर्चा में शामिल होना, इस पर भरोसा पाने के लिये उचित तर्क, उचित सिद्धान्त, स्त्रोत, व्याख्या पूर्वक स्वीकृति स्थली में पहुँचना आवश्यक है।
मानव कृषि सम्पन्नता बनाए रखने के क्रम में समृद्धि प्रधान उद्देश्य :
आदिकाल से मानव परम्परा में उपलब्धियों की दिशा में आहार की उपलब्धि प्रथम रही। इस मुद्दे में संतुष्टि पाने के लिए पत्ते, कन्द, मूल जीव जानवरों की हत्या कर माँस सेवन से कृषि पूर्वक अनाजों की उपलब्धि तक पहुँचे। शनै: शनै: पत्ते कन्द मूल सेवन की प्रथा सर्वाधिक उन्मूलन हो गयी, जहाँ तक जीव जानवरों को हत्या कर मांसभक्षण की परम्परा यथावत बनी ही है। इसमें परिवर्तन यही हुआ है पहले जंगली जानवरों पर निर्भर रहे अब सर्वाधिक पालतू जीव जानवरों को मारकर मांस प्राप्ति की विधि को अपना चुके है। इस विधि से मानव शाकाहार मांसाहार के पक्ष में अपनी रूचि की मानसिकता को तैयार कर लिया।
इस बीच विज्ञान युग का अपनी पूरी ताकत से प्रादुर्भाव हुआ। इसलिए विज्ञान की जब शुरूआत हुई तब विज्ञान मानसिकता मन्दिर गिरजाघर की मानसिकता के अनुकूल नहीं रही। इसीलिए सर्वाधिक मन्दिर गिरजाघर विज्ञान को नकार दिये। जब तक यह परम्परा रही कि राजा धर्मगद्दी धारी व्यक्ति की सहमति से राज्य व्यवस्था को सम्पन्न करते थे तब तक धर्मगद्दी की कट्टरता अतिरूढ़ थी। इन विरोधी मानसिकताओं में जो कुछ भी विज्ञान शिक्षा के प्रस्ताव आते रहे, उन सबका खंडन और दंड तक पहुँचा। तब विज्ञानियों ने अपने विवेक से राजाओं को समझाया कि आपको युद्ध करना ही है। युद्ध व्यवस्था रखना ही है। तो विज्ञान आपको सामरिक सामग्री उपलब्ध करायेगा। पहले ही एक राजा दूसरे राजा पर विजय पाने की इच्छा रखता था इस आधार पर राजा लोग सहमत हो गये। विज्ञानियों को संरक्षण देने का उद्देश्य बनाया। इसी बिन्दु से राज्य और धर्म गद्दी का अलगाव होना शुरू हुआ। इस क्रम में विज्ञान अपने प्रयोगों के लिए आवश्यक धन को राजगद्दी से प्राप्त करते रहे। सामरिक तंत्र की तीव्रता को प्रमाणित करने का प्रयोग तेज होता गया। इसी क्रम में कई वैज्ञानिक उपलब्धियों को जनमानस अपनाने को तैयार हुआ।