गयी। मानव का लक्ष्य जागृति के उपरान्त समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में पहचाना गया। इनमें से समझदारी का प्रयोग है उसका शुभ परिणाम ही समाधान रूप में अनुभव होना पाया जाता है। हर शुभ परिणाम सफलता का द्योतक होता है। हर विधा में हर आयाम में मानव सफलता पाना चाहता है। सहअस्तित्व विधि से यह हर मानव के लिए समीचीन है। क्यों कि समझदारी सबके लिए सुलभ होने की विधि अपने आप में जागृति का प्रमाण है। जागृति अनुभव की अभिव्यक्ति है। अनुभव सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में होता है। यह अनुभव न तो ज्यादा होता है न कम होता है। इस प्रकार अनुभव अपने में परम शाश्वत होना पाया जाता है। इसीलिए अनुभवमूलक विधि से ही हर मुद्दे में तृप्त होने की सहज स्थली बनी हुई है। तृप्ति जीवन सहज प्यास है। तृप्ति के उपरान्त तृप्ति के लिए हुई प्यास समाप्त हो जाती है। इसके फलन में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व, अभयतापूर्वक सहअस्तित्व का प्रमाण वर्तमानित रहता है यही तृप्ति का स्त्रोत है।
समाधान के लिए समझदारी का होना अनिवार्य है। समझदारी के प्रयोग से ही हम समाधान पाते है। समाधान के उपरान्त ही परिवारगत आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने का तौर तरीका सुलभ होता है, सम्भावना पहले से ही रहती है। सम्भावनाओं को पहचानना समझदारी पूर्वक अति सुलभ हो जाता है समाधान, समृद्धि के फलस्वरुप उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता विधि से अभयता अपने आप में उद्गमित होती है यही वर्तमान में विश्वास होने का प्रमाण है। ऐसी प्रतिष्ठा का प्रभाव सहअस्तित्व में प्रमाणित होना सुलभ होता है यही जागृति है। इससे स्पष्ट हो गया कि हम मानव जागृति पूर्वक ही सम्पूर्ण वस्तुओं की उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता को प्रमाणित करते हैं जिससे तुष्टि बिन्दु अर्थात् समाधान बिन्दु तक पहुँचना सुलभ हो जाता है। इसी सम्पदा के साथ हम संबंध मूल्य, मूल्यांकन, उभयतृप्ति सम्पन्न हो जाते हैं। यह तृप्ति की निरन्तरता का प्रमाण है। तृप्ति समाधान और प्रामाणिकता प्रमाण एक दूसरे के पूरक विधि से क्रियान्वयन होते ही है। यही जागृत मानव परम्परा की पहचान है।
जागृत मानव ही इस धरती पर मानवत्व सहित व्यवस्था के रूप में जीने के अधिकार से सम्पन्न होते हुए देखने को मिलते हैं। अधिकार स्वत्व का ही होता है इसके फलन में स्वतंत्रता प्रमाणित होती है। समझदारी स्वत्व रूप में प्रयोग एवं व्यवहार करने के रूप में अधिकार, इसको सार्थक बनाने के क्रियाकलाप के रूप में, स्वतंत्रता सार्थक होते हुए देखने को मिलती है। हर व्यक्ति अपने को सार्थक सिद्ध करना चाहता ही है। सार्थकता ही पहचान का आधार है। जिससे