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अनंत क्रिया समूह ही प्रकृति एवं विराट् है । प्रत्येक क्रिया विराट् का एक अंश है । प्रत्येक परमाणु भी एक सूक्ष्म विराट् है ।

लक्षण लक्ष्य पूर्वक ही नियम, न्याय, समाधान व अनुभव पूर्वक दर्शन है ।

नियम में अपरिणाम-अपरिवर्तन-अपरिपाक; न्याय में असंदिग्धता व अभयता; धर्म में निर्विषमता एवं सहअस्तित्व; समाधान में स्वर्गीयता व समृद्धि और अनुभव में आनंद और प्रामाणिकता सहज निरंतरता है, इसके लिए ही मानव तृषित है ।

नियम, न्याय, धर्म, सत्य शब्द भी ब्रह्मानुभूति सहज अर्थ को इंगित करते हैं । इन सबमें सहअस्तित्व ही इंगित है । जागृत मानव में स्वतंत्रता ही समाधान, समाधान ही समत्व, समत्व ही सहज समाधि, सहज समाधि ही आनंद, आनंद ही जीवन जागृति, जागृति ही स्वतंत्रता है ।

स्वतंत्रता सहज कामना प्रत्येक मानव में विद्यमान है ।

जड़ प्रकृति के साथ नियम पूर्वक उत्पादन, समाज में न्याय पूर्वक व्यवहार, स्वयं में समाधान पूर्ण विचार एवं सत्ता में अनुभवपूर्ण क्षमता से संपन्न होना ही मानव इकाई सहज परम जागृति है । यही स्वतंत्रता का आद्यान्त लक्षण व स्वानुशासन का स्वरूप है ।

स्वतंत्र मानव इकाई जागृति सहज प्रमाण है तथा अन्य उसका अनुसरण करने में या पूर्ण जागृति के निकट है ।

जागृति पूर्ण मानव इकाई अन्य के अभ्युदय के लिए सहायक है ।

स्वतंत्र मानव इकाईयों की संख्या वृद्धि हेतु मानवीयता सहज व्यवहार, उत्पादन तथा व्यवस्था का अध्ययन व आचरण की एकसूत्रता आवश्यक है ।

मानव इकाई विकास (जागृति) पूर्वक ही अनुभववेत्ता सिद्ध हुई है । जड़ अवस्था से विकास पूर्वक चैतन्य अवस्था प्राप्त होती है । ये चैतन्य इकाईयाँ ही जीवावस्था तथा ज्ञानावस्था के प्रभेद से गण्य है ।

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