जड़ प्रकृति की वस्तु स्थिति, रासायनिक प्रक्रिया एवं भौतिक संरचना के ज्ञान से, ज्ञानावस्था सहज जागृत इकाईयाँ नियंत्रण पूर्वक उसका उपयोग, सद्उपयोग एवं पोषण करती हैं ।
बोधपूर्ण होने पर स्वमूल्यांकन पूर्वक मानवीयतापूर्ण सामाजिकता सुलभ हो जाता है । फलस्वरूप मानव देव एवं दिव्य मानवीयता के प्रति जिज्ञासा एवं लक्ष्य स्फुरित होता है । उसकी पूर्ति हेतु प्रयास भी प्रत्यक्ष है ।
चैतन्य इकाई अर्थात् चैतन्य परमाणु में मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि एवं आत्मा अविभाज्य वर्तमान है जिसके अध्ययन के बिना सत्यता जानना संभव नहीं है ।
मन में बत्तीस प्रकार के आस्वादन, वृत्ति में अठारह प्रकार के तुलन, चित्त में आठ प्रकार के चित्रण, बुद्धि में दो प्रकार के बोध एवं आत्मा में मात्र अनुभव क्रिया का विश्लेषण मानव व्यवहार दर्शन में किया गया है ।
ब्रह्मानुभूति ही आनंद सहज निरंतरता है ।
जागृत मानव में भौतिक समृद्धि परस्पर मानवीयता पूर्ण व्यवहार पूर्वक समाधान एवं उसकी निरंतरता है । जिसकी उत्कट अभिलाषा भी प्रसिद्ध है ।
आस्वादन एवं अनुभूति का अवसर मात्र ज्ञानावस्था की इकाई को ही प्राप्त है ।
प्रकृति की स्थिति संकेत ग्रहण तथा व्यापकता में अनुमान-अनुभव की क्षमता ही ज्ञानावस्था को प्रधान अवसर एवं उपलब्धि के रूप में प्राप्त गरिमा है ।
ज्ञानात्मा ही वांछित परिमार्जन से देव तथा दिव्यात्मा पद पाती है न कि जीवात्मा ।
दिव्यात्मा पद ही मोक्ष पद है । यही जागृति सहज चरमोत्कर्ष है ।
दया-कृपा-करूणा ही दिव्यात्मा का स्वभाव, ब्रह्मानुभूत प्रवृति तथा दृष्टि केवल सत्य है ।