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पाँच संवेदन क्रियाओं द्वारा आस्वादन एवं स्वागत क्रिया की अभिव्यक्ति होती है । स्वागत भाव पक्ष का बोधपूर्वक अनुभव भी होता है ।

स्वागत एवं आस्वादन क्रिया मानव में प्रसिद्ध है ।

स्वागत भाव में अनुभव के लिए, आस्वादन भाव में भोगों के लिए अनुमानांकुर है ।

भोग पूर्वक आस्वादन केवल जड़ पक्ष में, से, के लिए है । अनुभवाकांक्षी स्वागत भाव सत्य में ही है ।

लोक सत्य, वस्तु स्थिति सत्य एवं वस्तुगत सत्य के रूप में तथा व्यापक स्थितिपूर्ण प्रसिद्ध है । यह प्रमाण सिद्ध है । दर्शन क्षमता की अपूर्णता की स्थिति में अनुमान, अध्ययन और अनुभव के लिए प्रयास का उदय होता है ।

लक्षण और लक्ष्य के योगफल में अनुमान का उदय होता है । विज्ञान एवं विवेक-ज्ञान ही प्रमाण है जो अनुभव समाधान व्यवहार व प्रयोग ही है ।

वस्तु स्थिति सामयिक सत्य है ।

काल-क्रिया-परिणाम से मुक्त नित्य, सत्य ब्रह्म ही है ।

संवेदनाओं के आस्वादन की अपेक्षा में स्वागत भाव का अधिक हो जाना ही जागृति की ओर गति है । इसके विपरीत भोगों में प्रवृत्ति है जो अजागृति व ह्रास का लक्षण है ।

आत्मा कारण (मध्यस्थ) क्रिया है । अस्तित्व एवं आनंद ही उसका आद्यांत लक्षण है ।

ज्ञानावस्था में मानवीयता पूर्ण मानव ही उत्पादनशील व्यवहारशील, विचारशील एवं अनुभवशील इकाई है ।

मानव में कार्य-व्यवहार काल, विचार काल एवं अनुभव काल प्रसिद्ध है । उत्पादन, व्यवहार एवं विचार की उपादेयता अनुभव की आशा एवं आकाँक्षा में ही है ।

ब्रह्म के अतिरिक्त और कोई सत्ता नहीं है ।

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