मानवाकार शरीर को ज्ञानात्मा अपनी आशा, विचार एवं इच्छानुसार संचालित करता है। जीवात्मा मानवेतर पशु-पक्षी आदि जीव शरीरों को आशानुरूप संचालित करता है । ज्ञानात्मा ही जागृतिपूर्वक जागृत मानवात्मा, देवात्मा या दिव्यात्मा में गण्य है । क्रम से इन्हीं को मानव, देव मानव और दिव्य मानव संज्ञा है ।
दिव्य मानव, देव मानव और मानवीयतापूर्ण मानव ब्रह्मानुभूति (सहअस्तित्व अनुभूति) सम्पन्न है और अमानव में भी ब्रह्म भासता है । इसलिए जिनको चार विषयों में भोग, अतिभोग करते हुए सुख भासता है जिसकी निरंतरता नहीं हो पाती है यही अमानव में जागृति सहज अपेक्षा है ।
आनंद सहज निरंतरता की आशा, आकाँक्षा और जिज्ञासा मानव में पायी जाती है । जागृतिपूर्वक ब्रह्मानुभूति के लिए मानव प्रयासरत है ।
क्रिया तथा ब्रह्म में लक्षण भेद है ।
क्रिया अनंत संख्या में अनेक अवस्थाओं सहित स्थूल, सूक्ष्म और कारण भेद से प्रत्यक्ष है । ब्रह्म अखण्ड, पूर्ण, व्यापक है ।
जड़ (स्थूल) क्रिया का परिणाम, परिवर्तन, परिपाक प्रत्यक्ष है ।
चैतन्य क्रिया में आशा, विचार, इच्छा और संकल्प की सक्रियता और उसका परिमार्जन, विकल्प भी प्रसिद्ध है । सत्यानुभव योग्य क्षमता, योग्यता, पात्रता से परिपूर्ण होने तक स्वीकृति रूपी परिपाक, परिमार्जन और जागृति सहज विकल्प की श्रृंखला बनी हुई है, जो पूर्णता एवं स्वतंत्रता हेतु मार्ग है ।
सत्यानुभव आत्मा में अनुभव, बोध बुद्धि में, अनुभव बोध सहज प्रतीति चित्त में , अनुभव सहज चिंतन का आभास वृत्ति में एवं भास मन में होता है ।
अध्ययन क्रम में अनुभव क्षमता की आंशिकता में बोध, बोध की आंशिकता में प्रतीति, प्रतीति की आंशिकता में आभास एवं आभास की आंशिकता में भास क्षमता प्रसिद्ध है, जो साक्ष्य में प्रत्यक्ष होने वाली संज्ञानीय क्रियायें हैं । यही ज्ञानावस्था सहज महिमा है ।