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नियम-प्रक्रिया-लक्षण सहित साधार अनुमान अन्यथा निराधार-अनुमान है ।

प्राप्त की अनुभूति और प्राप्य की उपलब्धि प्रसिद्ध है ।

प्रत्येक इकाई विराट् का एक अंश है इसलिए वह विराट् का संकेत ग्रहण करने के लिए प्रवृत है ।

प्रकृति निर्माण के आरम्भिक क्रम तथा ब्रह्म के अस्तित्व के आरंभिक काल के संबंध में कोई प्रमाण नहीं है । वर्तमान में सत्ता और सत्ता में समाहित प्रकृति ही प्रत्यक्ष है । प्रकृति और सत्ता के आदि और अन्त की चर्चा विगत और आगत में है, जिसके अंतराल का कोई प्रमाण नहीं है । गणना ऋण-धन-अनंत की स्थिति में प्रस्तुत हुई है ।

निराधार अनुमान, प्रत्यक्ष या साधार (योजनाबद्ध अनुमान) नहीं है । यह प्रसिद्ध है ।

आकार-आयतन-घनोपाधियुक्त अनंत लोकों का आधार भी ब्रह्म ही है ।

सूत्र, छंद, वाक्य, शब्द के द्वारा क्रिया मात्र का वर्णन है । साथ ही ज्ञानानुभूति के लिए उपदेश पूर्वक इंगित भी है ।

ब्रह्म सहज वर्णन पारगामी व्यापक और पारदर्शीयता के रूप में है । “यह” केवल भास, आभास, बोध तथा अनुभवगम्य है । इसका बोध मानव की क्षमता, योग्यता, पात्रता पर आधारित है ।

प्रत्येक इकाई का आधार ब्रह्म ही है । सबको मूल प्रेरणा “यह” में ही प्राप्त है । प्रकृति सत्ता में संपृक्त है ।

ब्रह्म में प्रेरणा पाने-प्रदान करने के लिए संकल्प-विकल्पादि की पुष्टि नहीं है ।

नियंत्रण ही प्रेरणा है । व्यापक में ही प्रकृति नियंत्रित है ।

ब्रह्म से रिक्त-मुक्त-क्रिया एवं स्थान नहीं है ।

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