ब्रह्म व्यापक और क्रिया सीमित है । अतः सम्पूर्ण क्रिया ब्रह्म में संपृक्त (आश्लिष्ट-संश्लिष्ट) है । इसलिए प्रकृति ब्रह्म में नियंत्रित है ।
सम्पृक्तता ही नियंत्रण, नियंत्रण ही प्रेरणा व प्रेरणा ही ज्ञान है ।
ब्रह्म में ज्ञानावस्था सहज जागृति में, से, के लिए गति है । ज्ञान ही ब्रह्म, ब्रह्म ही व्यापक, व्यापक में हर इकाई नियंत्रित, नियंत्रण ही प्रेरणा, प्रेरणा ही नियम-न्याय-धर्म-सत्य, नियम-न्याय-धर्म-सत्य ही प्रेम, प्रेम ही अनुभूति, अनुभूति ही जागृत जीवन, जागृत जीवन ही आनंद, आनंद ही ब्रह्मानुभूति और ब्रह्म ही ज्ञान है ।
लक्ष्य की ओर त्वरण-क्रिया ही प्रेरणा व ज्ञान है ।
प्रकृति मूलतः ब्रह्म में नियंत्रित व प्रेरित है । वह सदा चार अवस्थाओं में अभ्युदयशील है ।
मानव लक्ष्य मात्र अनुभूति ही है । विराट् में स्थित जड़ प्रकृति का उपयोग जीवावस्था एवं ज्ञानावस्था की इकाई अहर्निश करता आया है । मानव को आनंद सहज निरंतरता पद मुक्ति के अतिरिक्त नहीं है । यही दिव्य मानव पद है ।
जागृति पूर्वक प्रत्येक क्रिया की प्रेरणा में अनुभव से अधिक अनुमान है ।
जड़ प्रकृति के आस्वादन से आनंद की निरंतरता नहीं है ।
श्रम का क्षोभ ही विश्राम की तृषा है । ब्रह्मानुभूति ही पूर्ण विश्राम है । पूर्ण विश्राम ही सर्वतोमुखी समाधान सहज प्रमाण है ।
क्रिया मात्र की वस्तुस्थिति का दर्शन-ज्ञान होना एवं सत्य में अनुभव होना प्रसिद्ध है ।
ब्रह्म नित्य-सत्य-व्यापक-अखण्ड-ज्ञान एवं शाश्वत है । यह स्थूल, सूक्ष्म, कारण क्रिया और परिणाम से रहित, देश, कालातीत, आनंद स्वरूप एवं पूर्ण है ।