1.0×

मानव दूसरे के देह त्याग की क्रिया को देखता है । उस समय उसमें पाये जाने वाले लक्षण भी स्वप्रभावीकरण प्रक्रिया की पुष्टि है ।

संस्कारों के प्रभाव का प्रत्यक्ष रूप मन, वृत्ति, चित्त और बुद्धि की सक्रियशीलता है जो “ता-त्रय” में व्यक्त होती है ।

प्रत्येक कर्म के स्फुरण के मूल में संस्कार है । प्रत्येक कर्म संस्कारदायी है । क्रिया की प्रतिक्रिया व परिपाक प्रसिद्ध है ।

आस्वादन एवं चयन क्रिया का प्रभाव मन पर, विश्लेषण एवं तुलन क्रिया का प्रभाव वृत्ति पर, चित्रण एवं चिंतन क्रिया का प्रभाव चित्त पर, संकल्प एवं बोध का प्रभाव बुद्धि पर होता है ।

सत्य बोध योग्य संस्कारों से समृद्ध होने तक बुद्धि ही अहंकार के रूप में है ।

अहंकार ही भ्रम एवं अज्ञान का कारण है ।

आत्मा का संकेत ग्रहण करने में बुद्धि की अक्षमता ही अहंकार है ।

गुणात्मक संस्कारों द्वारा ही अहंकार से मुक्ति है । साथ ही इससे अभिमान रहित संकल्पोदय होता है ।

भ्रम से मुक्त होने के लिए सत्यासत्य के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों के दृढ़ संकल्प में परिणित होने की दृष्टि से प्रतिबद्धता की अनिवार्यता है ।

सिद्धांत व प्रक्रिया पूर्वक सत्यता का उद्घाटन ही शोध है ।

सुप्रवृत्तियों एवं सुसंस्कारों के लिए मानवीय परिवार एवं समाज सहज परम्परा के अध्ययन से प्राप्त वस्तुबोध तथा परिवेश गत प्रेरणाएं सहायक तथ्य हैं ।

कृतज्ञता, अस्तेय, अपरिग्रह, सत्यभाषण, स्वनारी-स्वपुरूष गमन, सरलता, दया, स्नेह पूर्वक विश्वासपालन, यथार्थ वर्णन, कर्त्तव्यों व दायित्वों का वहन, अधिक उत्पादन कम

Page 22 of 64
18 19 20 21 22 23 24 25 26