तथा इन्द्रिय मन, वृत्ति और चित्त के द्वारा स्थितिवत्ता एवं सत्यवत्ता की व्यंजना बुद्धि पर उनके जागृति और अभ्यास के स्तर के अनुरूप पायी जाती है ।
वातावरणस्थ क्रिया संकेतग्रहण एवं प्रसारण क्षमता ही व्यंजना है ।
प्रत्येक संकेत के पूर्व अधिष्ठित आशा, विचार, इच्छा और संकल्प को वे संकेत पुनराकार प्रदान करते हैं । जो वर्तमान में प्रत्यक्ष है । फलतः मानव में अनेक वैविध्यताएं कुशलता, निपुणता, कला, विचार और आशा के रूप में प्रकट होती है साथ ही पांडित्य में, से, के लिए ही सार्वभौमता है ।
शरीर के द्वारा व्यवहार, हृदय के द्वारा शरीर, प्राण के द्वारा हृदय और मन के द्वारा प्राण का संचालन प्रसिद्ध है ।
मन का संकेत संवेग के रूप में है । वह प्राण के द्वारा मेधस पर प्रसारित होता है । मेधस से तरंग में अनुवर्तित होकर शरीर को क्रिया-व्यापार में रत होने के लिए बाध्य कर देता है । बाह्य प्रकृति के संकेत इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं । यह परानुक्रम संकेत ग्रहण प्रक्रिया है।
आशा और विचारों के स्पंदन के अनुरूप प्राणोद्दीपन और प्राणोद्दीपन के अनुरूप आशा और विचारों का स्पंदन प्रसिद्ध है । यही प्रक्रिया काम, क्रोध, भय, भ्रांति, मोह, शोकादि क्लेश परिपाकी क्रियाओं में स्पष्टतया परिलक्षित होती है ।
स्पंदन-प्रतिस्पंदन क्रिया प्रक्रिया सहित ही संतुलन-असंतुलन, समाधान-समस्या, स्नेह-द्वेष, शान्ति-अशान्ति, संतोष-असंतोष, गौरव-तिरस्कार, आदर-अनादर, विश्वास-अविश्वास, श्रद्धा-अश्रद्धा, धैर्य-अधैर्य एवं कृतज्ञता-कृतघ्नतापूर्ण कार्य व व्यवहार को मानव सभी आयामों, कोणों तथा स्थितियों में निर्भ्रान्ति अथवा भ्रांतिपूर्वक संपन्न करता है ।
प्रत्यावर्तन ही पूर्वानुक्रम है । इसी पद्धति से आत्मा का प्रभाव बुद्धि पर, बुद्धि का प्रभाव चित्त पर,चित्त का प्रभाव वृत्ति पर, वृत्ति का प्रभाव मन पर पाया जाता है । यही आत्म नियंत्रित अभिव्यक्ति है । यही अनुभवमूलक जीवन एवं जीवन की पूर्णता है ।
आत्मानुशासित जीवन ही अनुभव पूर्ण है ।