पाए जाने वाले नियमों का विश्लेषित होना ही अध्ययन है । अध्ययन से संबंधित क्रिया ही प्रयोग, व्यवसाय, व्यवहार, प्रयास एवं अभ्यास है ।
प्रयोग पूर्वक ही रासायनिक एवं भौतिक क्रिया का अनुभव है, जिसका प्रत्यक्ष रूप ही है भौतिक समृद्धि ।
प्रयास पूर्वक मानव द्वारा ही मानव की परस्परता में निहित मूल्य का निर्वाह किया जाता है जो व्यवहार है, इसका प्रत्यक्ष रूप ही सहअस्तित्व है, यही व्यवहारिक समाधान है ।
मानव अभ्यास पूर्वक ही मानवीयता, देव मानवीयता, दिव्य मानवीयता में प्रतिष्ठित होता है जिसका प्रत्यक्ष रूप दया, कृपा एवं करूणा है ।
“नित्यम् यातु शुभोदयम्”