1.0×

निर्भ्रमता ही सजगता, सजगता ही सहअस्तित्व में अनुभव, अनुभव ही जागृति एवं जागृति ही निर्भ्रमता है ।

सीमा विहीनता सहज उदय ही जागृति है व संप्रेषणा, अभिव्यक्ति ही प्रमाण है ।

अज्ञान, ज्ञाता की अक्षमता का द्योतक है, न कि ज्ञान का अभाव । यह जागृति पूर्ण क्षमता से ही प्रमाणित होता है । वस्तु स्थिति एवं वस्तुगत सत्य का दर्शन, स्थिति सत्य (सत्ता) में अनुभव उदय ही जागृति है ।

प्रत्येक चैतन्य इकाई में किसी न किसी अंश में दर्शन क्षमता (कल्पना का उदय) दृष्टव्य है । प्रत्येक चैतन्य इकाई अपनी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई से अधिक क्षेत्र में क्रियाशील है, यह उदय का मूल कारण है । उदय ही अनुमान है ।

ब्रह्मानुभूति-पर्यन्त उदय का अभाव नहीं है साथ ही अनुमान का भी अभाव नहीं है । अनुभव में ही अनुमान तिरोहित होता है यह प्रसिद्ध है ।

चैतन्य इकाई ने निर्भ्रमता पूर्वक आशा, विचार, इच्छा, संकल्प और अनुभूति को दूर-दूर तक फैला हुआ देखा है, यही उदय है जिसमें अंधकार में प्रकाश का, मृत्यु में अमरत्व का, अज्ञान में ज्ञान का अनुभव है ।

वस्तु स्थिति में देश, काल, दिशा परिमिति को; वस्तुगत सत्य में रूप, गुण, स्वभाव की परिमिति तथा धर्म की विशालता को स्पष्ट किया है । अनुभव में ही अपरिमितिता को प्रमाणित किया है । पूर्ण ही ब्रह्म, ब्रह्म ही प्रत्यक्ष है । यही पूर्ण वैभव है ।

प्रत्येक इकाई की स्थिति अन्य की अपेक्षा में स्वयं की दिशा स्पष्ट करती है ।

अनुभव मूलक विचार ही व्यवहार में न्याय सहअस्तित्व तथा व्यवसाय में समृद्धि है ।

ज्ञान अनुभव तथा क्रिया दर्शन है ।

स्थितिवत्ता सहज ज्ञान ही बोध एवं उसका अनुभव ही जागृति है ।

Page 45 of 64
40 41 42 43 44 45 46 47 48