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परमानंद निरंतरता में दया-कृपा-करूणा निःसृत होती है । यह अविकसित के विकास के लिये सर्वाधिक उपयोगी है । अध्ययन, अभ्यास अनुभव प्रक्रिया ज्ञानावस्था में प्रसिद्ध है ।

ब्रह्म (पूर्ण) में अनुभव प्रमाण सहित इंगित किया है साथ ही प्रकृति की चारों अवस्थाओं के विश्लेषण को व्यवहार प्रमाण सहित व्याख्यायित किया है और प्रयोग प्रमाण को भी स्वीकारा है । जिसके सुदृढ़ आधार पर सर्वमंगल कार्यक्रम अर्थात् मानव जीवन में अभ्युदयात्मक कार्यक्रम निर्विवाद रूप में स्पष्ट हुआ है जो पूर्णतया व्यवहारिक है । यह सर्वसुलभ होने की कामना है जिससे ही :-

भूमि स्वर्ग होगी, मानव देवता होंगे ।

धर्म सफल होगा एवं नित्य मंगल होगा॥

नित्यम् यातु शुभोदयम्

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