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बाकी देश शोषित होने के योग्य हो चुके हैं। इस विधि से प्रचलित लाभोन्मादी अर्थतंत्र के अनुसार इसका समाधान बिन्दु मिलता नहीं है।

तटस्थ देशों का मानना है किसी भी खेमे में कूटनीति और समरनीति को समाहित न किया जाये। तो किया क्या जाये? इसका उत्तर स्पष्ट नहीं है। इस विधि से स्पष्ट नहीं है कि तटस्थ चरित्र क्या चीज है ? इसका उत्तर मिलता नहीं है। यह उस समय उद्गमित हुई जब साम्यवादी और पूंजीवादी कटु विरोधी रूप में कार्य करते रहे। प्राय: इस तटस्थता के पक्ष में वे सभी देश हैं जो सामरिक तंत्र और मात्रा में अपने को कमजोर समझते है अथवा कमजोर है। व्यवहारात्मक विचारों से इसका मूल्यांकन होना एक आवश्यकता रही।

सर्वाधिक देश जिसकी भागीदारी को स्वीकारें है वह राष्ट्रसंघ अभी तक किसी सार्वभौम संविधान, सार्वभौम शिक्षा, सार्वभौम जनमानसिकता को पाने की विधा ढूँढने की कोशिश में हैं। ऐसा उन संस्थाओं के उद्गार से पता लगता है। युद्ध विभीषिका को रोकने के पक्ष में अपनी सम्मति को व्यक्त किया रहता है। इन मनोनीतियों के अनुसार इस संस्था में सर्वोच्च प्रतिभाएँ काम करते रहते हैं। राष्ट्रसंघ के मानसिकता के अनुसार भी विकास और बेहतरीन जिन्दगी की सम्मति अभी तक संग्रह-सुविधा युद्ध सामरिक तंत्र में अग्रगामियता, व्यापार में सर्वाधिक फैला हुआ देशों को विकसित मानने के पक्ष में दिखाई पड़ती है। जबकि संग्रह-सुविधा अभी तक जिस चोटी में पहुँच चुकी है उतना संग्रह-सुविधा सबको मिलने की विधि इस धरती पर नहीं हो सकती। क्योंकि संग्रह-सुविधा से लैस व्यक्ति हर परिवार संस्था को मिलने का प्रावधान नहीं है। इसके लिए धरती छोटी दिखाई पड़ती है। थोड़े लोग इस धरती पर रहने से सबको सुविधा-संग्रह मिल जायेगा विभिन्न संस्थाओं ने ऐसा भी सोचा। इसी आधार पर विभिन्न राज्य संस्था, समाजसेवी संस्था, संयुक्त राष्ट्र संघ और भी जितने छोटे बड़े संगठन है वे सब इस बात को दोहराते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण होना चाहिये।

यह भी एक नजीर इसी दशक में देखने को मिला कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के आवाहन के अनुसार एक पृथ्वी सम्मेलन किया गया जिसमें ऊपर कहे गये ढाँचा-खाँचा में आने वाले देश अपने को विकसित एवं अन्य देशों को विकासशील अथवा अविकसित घोषित किये। इस पर राष्ट्रसंघ अपनी सहमति व्यक्त किया। साथ ही यह भी बताए कि जो अपने को विकसित देश घोषित किये हैं उनके मार्गदर्शन के अनुसार अन्य देश चलना चाहिये क्योंकि उक्त दोनों कोटि के देश विकसित होना जरूरी है। विकास का दावा जितने देश भी किये है उसमें अधिकांश भाग अत्याधुनिक

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