जनचर्चा में वास्तविकता को परखने की विधि, यथार्थता को उद्घाटित करने की विधि, सत्यता को स्वीकारने की विधि :
मानव संवाद में अध्ययन में वस्तु कैसी है इस बात को बोध कराने की अपेक्षा स्पष्ट हुई है मानव जब परस्परता में संवाद, अध्ययन कर पाता है उक्त आशय के अर्थ में ही होना पाया जाता है। यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता ही अध्ययन के लिए सर्व मुद्दा है। इन मुद्दों पर जनचर्चा होना अर्थात् मानव में परस्परता में संवाद होते आया है। सहअस्तित्ववादी विधि से वास्तविकता को परखने की अर्थात् जाँचने की विधि स्पष्ट है वस्तु कैसी है इसे अध्ययनगम्य, बोधगम्य, अनुभवगम्य होना ही परखने का मतलब है। क्यों, कैसे का उत्तर पाना ही समाधान है। हम सम्पूर्ण संवाद समाधान के लिए ही करते हैं। व्यापक वस्तु में एक-एक वस्तु है यही मूलत: सहअस्तित्व है। सहअस्तित्व में सम्पूर्ण इकाईयां चार अवस्थाओं में दृष्टव्य है। यह पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था और ज्ञानावस्था के रूप में है। ज्ञानावस्था में मानव ही यह सब अध्ययन करने के लिए उत्सवित है, प्रयत्नशील है। इन प्रयत्न में संवाद भी एक प्रयत्न है। प्रयत्न का तात्पर्य प्रयोजनों को पहचानने के लिए किया गया कायिक, वाचिक, मानसिक श्रम है। इससे स्पष्ट है कि हम प्रयोजनों को पहचानना ही चाहते हैं मानव का प्रयोजन जीवनाकांक्षा, मानवाकांक्षा को प्रमाणित करना है। जागृतिपूर्वक ही वास्तविकता को हर अवस्था और पदों में पहचाना जाता है। पद चार होना स्पष्ट है प्राण पद, भ्रान्ति पद, देव पद, दिव्य पद। इनमें से प्राण पद में पदार्थ और प्राण अवस्था के संयुक्त कार्यकलापों का अध्ययन है। इस अध्ययन में इन की परस्परता में पूरकता विधि प्रभावशील रहना पायी जाती है। पूरकता के आधार पर सभी पद प्रतिष्ठा यथास्थिति रूपी अवस्थाएँ होना दृष्टव्य है इसी तथ्य के आधार पर वस्तु कैसा है यह बोध होना आवश्यक है।
पदार्थावस्था की सम्पूर्ण वस्तुओं में मूलत: परमाणु है। हर परमाणु अपने त्व सहित व्यवस्था है। और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करता है। यही मूलत: वस्तु कैसा है का उत्तर है क्योंकि हर वस्तु अपने त्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करती है यही यथार्थता है यही सभी पदों में दृष्टव्य है। त्व सहित व्यवस्था के क्रम में हर वस्तु स्वभाव गति में होती है, मानव की स्वभाव गति जागृति पूर्वक ही स्पष्ट होती है। हर मानव अपनी स्वभाव गति में होने के आधार पर अध्ययन और अध्ययन करने योग्य होता है। हर वस्तु की त्व सहित व्यवस्था के रूप में पहचान ही वास्तविकता है। मानव अपने को मानवत्व सहित व्यवस्था के रूप में पहचानना