1.0×

जनचर्चा में मानवीयतापूर्ण योजनाओं की स्वीकृतियाँ :

जागृतिपूर्ण मानव मानवीयतापूर्ण पद्धति से ही योजना, कार्य योजना और व्यवहार योजना को सार्थक बना पाता है। सार्थकता का मूल बिन्दु अर्थात् मूल स्वरूप मानवीय व्यवस्था में भागीदारी करना ही है। मानवीय व्यवस्था अपने में स्वराज्य व्यवस्था ही है जिसकी आवश्यकता सदा से बनी है। मानव अपने में जागृति के क्रम में ही ज्यादा देर लगाया है। जागृति क्रम में असंतुष्टि हर मंजिल में प्राप्त होने के आधार पर जागृति अवश्यंभावी हो गई है।

जागृति पूर्वक ही मानव, मानवीय व्यवस्था को अपनाया करता है अन्यथा भ्रमित रहता है। भ्रमित रहने तक स्वयं अव्यवस्थित रहता है अन्य से व्यवस्था की अपेक्षा करता है। स्वयं समस्या को प्रसवित कर देता है अन्य से समाधान चाहता है यही भ्रम कहलाता है। भ्रमवश मानव परेशान होता है परेशानियों से मुक्त होने की अपेक्षा हर समस्याग्रस्त मानव में निहित है। इन्हीं आधारों पर जागृति अवश्यंभावी हो गई है।

शुभ संकेत यही है मानव को जागृति स्वीकार होती है भ्रम स्वीकार नहीं होता है। जागृति के अनन्तर ही हम मानव सदा-सदा समाधान परम्परा के रूप में प्रमाणित हो पाते है। ऐसी शुभ घटना के लिए सूचना के रूप में मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद मानव कुल के लिए प्रस्तुत है।

जनचर्चा में उत्सवों की परिकल्पना :

हर मानव बारम्बार उत्सवित होने की अपेक्षाओं को अपने में समावेश कर लिया है। उत्सव का तात्पर्य उत्साह पूर्वक, उत्साह का तात्पर्य थोड़े प्रयत्नों के साथ साहसिकता पूर्वक अथवा धैर्य और प्रशस्त प्रक्रिया पूर्वक, मानव लक्ष्य के लिए, समझदारी के लिए किया गया प्रयास, यही उत्सव का तात्पर्य है। ऐसे उत्सव बारम्बार होना ही अभ्युदय है। अभ्युदय का तात्पर्य सर्वतोमुखी समाधान से है। मानव को सदा ही सोचने की आवश्यकता है। इसी आधार पर कल्पनाशीलता और कर्मस्वतंत्रता मानव के लिए वरदान माना गया है। इसी कल्पनाशीलता कर्मस्वतंत्रतावश और स्पष्टता की ओर गति हुई है। स्पष्टता ही विज्ञान विवेक के रूप में प्रमाणित होती है। सहअस्तित्व बोध और अनुभव इसी क्रम में सम्पन्न हुई है इसलिए मानव सदा सदा से अभ्युदयशील है ही।

Page 127 of 141