निश्चयन होना पाया गया। काल को क्रिया की, वस्तु की अवधि के रूप में पहचाना गया यह भी साथ में पहचाना गया कि हर अवधि संख्या के रूप में होती है। हर संख्या काल, क्रिया, नाप, तौल के रूप में ही पहचानने में आती है। हर प्रयोजनों को काल के आधार पर या क्रिया के आधार पर पहचानना संभव है। हर संख्यात्मक काल जो भूत और भविष्य के रूप में होना पाया जाता है यह क्रिया के साथ वर्तमान होना पाया गया। इस ढंग से क्रिया नित्य वर्तमान होना अध्ययनगम्य हो जाती है। अध्ययन में भाषा के द्वारा क्रिया, काल, वर्तमान अर्थ के रूप में स्पष्ट होते ही है। सार्थक अध्ययन यही है जिसके आधार पर हम मानव अपने पद और अवस्था प्रतिष्ठा को समझना सुलभ हो जाता है। ऐसी सुलभता की हर मानव अपेक्षा करता ही है। इसलिए सदा सदा मानव को अध्ययनपूर्वक समझदार होने की आवश्यकता बनी ही है। समस्त मानव किसी आयु के अनन्तर अपने को समझदार मानता ही है। अथवा समझदार होना चाहता ही है। इन स्थिति में पाये जाने वाले मानव अपने को राज्यगद्दी, धर्म गद्दी और व्यापार गद्दी में स्थापित कर लेता है। आज तक का इतिहास भी इसी तथ्य की पुष्टि है। गद्दी परस्त लोगों द्वारा जो गद्दी परस्त नहीं हैं उन्हें अपने व्यवसाय का वस्तु मान लिया जाता है। जैसा धर्मगद्दियों आस्थावादियों के साथ खेती, राजगद्दी जो राजनेता नहीं है उनके साथ खेती के अतिरिक्त (जो सामान्य जनजाति) इनके साथ खेती बनी हुई है इसका गवाही ही है धर्म गद्दी में पैर पड़ाई, दक्षिणा चढ़ाई कारोबार दिखाई पड़ता है। राजगद्दी में शुल्क टैक्स और राज्य के ऊपर कर्जा लेने का अधिकार का प्रयोग और संग्रहित कोष का मनमानी खर्च करने की स्वतंत्रता को देखा जा रहा है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में लाने से समीक्षित होता है कि सामान्य जनजाति की मानसिकता के आधार पर ही दोनों गद्दियों को मान्यता है। सामान्य जनजातियों में से कोई एक आदमी ही गद्दी परस्त होता है। उनसे सुख शान्ति की अपेक्षा सामान्य लोगों को बनी रहती है। यह विशेष कर राजगद्दी के साथ जुड़ी हुई तथ्य है। धर्मगद्दी के साथ और कुछ आशय सामान्य लोगों की मानसिकता में बना रहता है। यह पापमुक्ति, अज्ञान-मुक्ति और स्वार्थ मुक्ति की अभीप्सा देखने को मिलती है। इन्हीं आधारों पर धर्मगद्दियों के साथ कट्टरता अथवा निष्ठा बनी रहती है। इस क्रम में यह समीक्षित होता है, धर्मगद्दियों में जो प्रथम व्यक्ति अधिष्ठित होता है उनमें धर्म अपने स्वरूप में व्याप्त नहीं रहता है, इसका गवाही यही है सभी धर्मगद्दियाँ धर्म के लक्षणों को बताते है न कि धर्म को। इसी प्रकार जनमानस में राजगद्दी से अमन चैन की अपेक्षा बनी ही रहती है। इस तथ्य को परीक्षण करके देखा है कि मानव में सुख शान्ति का स्रोत मानव में ही प्रमाणित होने वाली जागृति है। जागृति के आधार पर समाधान, समाधान के आधार पर सुख का अनुभव, समाधान समृद्धि के साथ
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