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भाषा अपने में बोली के रूप में आता ही है। हर बोली का अर्थ होना पाया जाता है। ऐसे अर्थ अस्तित्व में कोई वस्तु, घटना, फल, परिणाम के रूप में होना पाया जाता है। इसी के साथ क्रियाकलाप, व्यवहार प्रक्रिया भी भाषा के अर्थ के रूप में अस्तित्व में होता ही है। अस्तित्व में होना ही अर्थ व वस्तु है क्यों कि प्रयोजन, परिणाम, फल, क्रिया, प्रक्रिया भी वस्तुगत विद्या ही है। ये सारे अर्थ, प्रयोजन के साथ ही सार्थक होना देखा गया है। सार्थकता तो सुस्पष्ट है। समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व ही वांछित उपलब्धि व वस्तु है। इसी के साथ सम्पूर्ण प्रकार के शिक्षा-संस्कार प्रक्रिया, न्याय-सुरक्षा प्रक्रिया, उत्पादन-कार्य प्रक्रिया, विनिमय-कोष प्रक्रिया, स्वास्थ्य-संयम क्रियाकलाप के रूप शब्द का अर्थ समझ में आता है। जिससे मानवाकांक्षा अथवा मानव प्रयोजन प्रमाणित होने की अपेक्षा मानव परम्परा में समाहित है ही।

जीवन अपेक्षा को सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द के रूप में पहचाना गया है। सुख को समाधान की स्वीकृति और अनुभव के रूप में पहचाना गया है। समाधान, समृद्धि की संयुक्त स्वीकृति और अनुभव, शान्ति का स्त्रोत और स्वरूप होना पाया जाता है। समाधान, समृद्धि, अभय (वर्तमान में विश्वास) के योगफल की अनुभूति एवं स्वीकृति को संतोष के रूप में पाया जाता है। समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व की संयुक्त अनुभूति आनन्द के रूप में सुस्पष्ट है। जीवन आकांक्षा और मानव आकांक्षा यह परस्परता में पूरक होना पाया जाता है। सहअस्तित्ववादी नजरिया से यह स्पष्ट होता है सुखी होने के लिए समाधान अपरिहार्य है।

सुख को मानव धर्म के रूप में पहचाना गया है। मानव ज्ञानावस्था की इकाई होने के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है। ज्ञान ही विज्ञान और विवेक के रूप में प्रमाणित होना पाया गया है। विवेक की सार्थकता लक्ष्य को पहचानने के रूप में, विज्ञान की सार्थकता को जीवन लक्ष्य मानव लक्ष्य के लिए दिशा और प्रक्रिया को स्पष्ट करने के रूप में और स्पष्ट हाने के रूप में, साथ ही प्रमाणित होने के रूप में पहचाना गया है। इसे हर व्यक्ति पहचान सकता है प्रमाणित हो सकता है। इसके लिए चेतना विकास मूल्य शिक्षा प्रस्तुत है।

सदा से मानव सुखी होने के लिए इच्छुक प्रयत्नशील रहा ही है। यत्न प्रयत्नों में सोचने समझने की आकांक्षा समाहित रही ही है। साथ में इनके फल परिणामों को आंकलित करते आया है। यह सभी प्रक्रियाएँ मानव के सुखधर्मी होने के प्रमाण में गण्य हैं। मानव का सुख धर्मी होना सर्वमानव में दृष्टव्य है।

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