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होना चाहता है। युद्ध और भोग विधि से सुख और सुख की निरन्तरता नहीं हो पाई। इसीलिए मानव व्यवस्था में जीने में सफल नहीं हो पाया।

संवाद के लिए यह भी एक प्रधान मुद्दा है सुखी होने के लिए समाधानित होना जरूरी है। समाधान के लिए समझदारी और व्यवस्था में जीने की तमन्ना और अभ्यास आवश्यक है। इस क्रम में हम परम्परा के रूप में व्यवस्था में जीते हुए समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पूर्वक सुखी होना, पूरी परम्परा सुखी होना मानव व्यवस्था के आधार पर जीना संभव हो जाता है। इसीलिए हम यह निर्णय कर सकते है मानव समझदारी पूर्वक ही सफल होता है। समझदारी मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार पूर्वक सर्व सुलभ होना पाया जाता है। इस विधि से हम इस बात पर निर्णय कर सकते है संवाद भी कर सकते है कि जीव संसार शरीर स्वस्थता को प्रमाणित करते है। अपनी आहार पद्धति से, विहार पद्धति से, मानव अपने आहार, विहार, व्यवहार पूर्वक सर्वतोमुखी समाधान को प्रमाणित करने की आवश्यकता आ चुकी है। इसलिए हर नर-नारी को सुखी होने के अर्थ में जीना स्वीकार है। इसे सार्थक, सुलभ अथवा सर्वसुलभ होने के अर्थ में मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद के अंगभूत व्यवहारात्मक जनवाद प्रस्तुत हुआ है।

समाधान अपने शरीरगत वस्तु है या जीवनगत है ? इस बात की चर्चा भी मानव कुल में प्रासंगिक है। निष्कर्षों को मानव परम्परा में स्थापित करना मानव का उद्देश्य है। भौतिकवाद, आदर्शवाद अपने-अपने तरीके से निष्कर्ष निकालने की कोशिश किए। आदर्शवाद रहस्य से मुक्त नहीं हो पाया और भौतिकवाद संघर्ष से मुक्त नहीं हुआ, रहस्यवाद मतभेद से मुक्त नहीं हुआ। संघर्ष, युद्ध, शोषण, द्रोह, विद्रोह से मुक्त नहीं हुआ। बहुत प्रकार से प्रयत्न तो किया है। मतभेद और संघर्ष से मुक्ति मानव कुल को मिली नहीं। यही आर्तनाद पुनर्विचार का आधार बना। पुनर्विचार करने से पता चला कि भौतिक और रासायनिक संसार को अध्यात्मवाद ने मिथ्या बता दिया। इसका प्रमाण मिला मानव परम्परा में, रहस्य के प्रति बढ़ता हुआ अनास्था। आस्था का तात्पर्य ना समझते हुए मानने की चेष्टा। ऐसी मान्यता के प्रति प्रतिबद्धता है। इस ढंग से रहस्य के प्रति उदासीनता, संघर्ष के प्रति अस्वीकार हर मानव में दिखाई पड़ता है।

लक्ष्य और दिशा को निर्धारित करने के लिए दो ध्रुव पहचानने में आया विवेक और विज्ञान। ये दोनों ज्ञान मूलक विधि से सार्थक होना पाया गया है। विवेक और विज्ञान अपने में लक्ष्य और दिशा को चिन्हित करने की विधि और प्रक्रिया है। मानव अपने में विवेचना पूर्वक ही लक्ष्य निर्धारित होता है। और विश्लेषण पूर्वक ही दिशा निर्धारित होती है। विश्लेषण में क्रिया गति का

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