उक्त क्रम में स्वाभाविक रूप में हर परिवार, ग्राम व कबीले के साथ-साथ क्रम से जंगल युग के अनन्तर पाषाणयुग, पाषाणयुग के अनन्तर धातुयुग, धातुयुग के अनन्तर स्वचालित यन्त्रयुग, और विद्युत युग का उदय हुआ। पहले से ही वन को काट कर मैदान बनाने की कार्य विधि को मानव अपना चुका था। क्रम से उक्त युगों के उदय के साथ-साथ खनिजों का दोहन, प्रौद्योगिकी प्रवृत्ति, संग्रह सुविधा की आवश्यकता, भोग, अतिभोग, बहुभोग की दिशाओं में प्रसवित, प्रदर्शित हुई। उपरोक्त क्रम से सम्पूर्ण राज्य मानस में युद्ध और युद्धकला हर देश या राष्ट्र के अहमता और सम्मान का कारण बना। राज्य और धर्म कहलाने वाले सदा-सदा ही एक दूसरे के आगे-पीछे चलते रहे। इसी के साथ-साथ आस्थावाद का समावेश होता ही रहा।
आज की जनचर्चा में इन्हीं मुद्दों का उद्घाटन है। प्रधानत: सामान्य जनमानस सुविधा-संग्रह के मुद्दे पर रोमांचित होता हुआ, उत्साहित होता हुआ देखने को मिलता है। सुविधा-संग्रह विधा में जिनकी कुछ पहुँच बन चुकी है, ऐसे लोगों में भोग, अतिभोग, बहुभोग रोमांचिकता का मुद्दा बना हुआ देखने को मिलता है। राजनेताओं में भी संग्रह सुविधा, भोग, अतिभोग की मानसिकता देश, राष्ट्र की अस्मिता नाम से युद्ध, शोषण और द्रोह के रूप में देखने को मिलती है। इस मुद्दे पर भी रोमांचित होने करने के लिए प्रयत्न किये जाते हैं।
आज की स्थिति का निरीक्षण, परीक्षण करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि राज्य, धर्म, व्यापार में भागीदार सभी मानव सुविधा-संग्रह को छोड़कर दूसरा कुछ कर नहीं पा रहें हैं। इसलिए उक्त जगहों में भागीदारी करते हुए मानव ही अधिक योग्य माने जा रहे हैं। इन सबकी गम्यस्थली उल्लेखित बिंदु ही है। इसलिए अपेक्षा, कथन और कार्य में अन्तर्विरोध देखने को मिलता है। जैसे हर राजनेता मेहनत और ईमानदारी के उपदेश सार्वजनिक सभाओं में देते हैं। किन्तु साथ ही सभी विधि से अपने सुविधा-संग्रह को बनाने, बढ़ाने में ही लगे रहते हैं। धर्म नेताओं के सम्पूर्ण उपदेश का सार त्याग, वैराग्य, परोपकार के लिए प्रवर्तित होता है। इस मुद्दे पर भी उल्लेखनीय तथ्य उतना ही है जितना राजपुरुषों के संबंध में ऊपर कहा गया है। तीसरी गद्दी, व्यापार गद्दी है। व्यापार घोषित रूप में ही संग्रह-सुविधा में लगा रहता है, जबकि व्यापार का मूल प्रयोजन लोक-सुविधा, लोकोपकार है। इस प्रकार से कथनी-करनी की दूरियाँ इन तीनों गद्दीयों में देखने को मिलती हैं। ये सब जन चर्चा का आधार बिंदु है। चौथी गद्दी, शिक्षा गद्दी के रूप में पहचानी जाती है। आज तक शिक्षा में उन्नयन (विकास) के नाम से व्यवसायिक शिक्षा के रूप में ही शिक्षा का ढाँचा-खाँचा बना हुआ है। शिक्षा रूपी व्यवसाय भी व्यापार के