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रूप में ही अथवा व्यापार के सदृश ही सुविधा-संग्रह की ओर प्रवर्तित देखने को मिल रहा है। इन सब को देखकर कृषि में निष्ठा रखने वाले, परिश्रम में विश्वास रखने वालों में सुविधा-संग्रह की ओर प्रवृत्ति होना स्वाभाविक है। क्योंकि चारों गद्दीयों में आसीन उनके साथी-सहयोगियों का जलवा और रूतबा ही इनके लिए आदर्श रहा है। सर्वाधिक लोग आज भी कृषक और श्रमजीवी हैं तथा यही लोग, लोक सामान्य और आम जनता के नाम से जाने जाते हैं।

जनचर्चा में मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग का अनुसरण करने वाले सभी लोग समाहित रहते हैं। आज की स्थिति में जनचर्चा के सर्वाधिक मुद्दे सुविधा, संग्रह , भोग पर आधारित होतें हैं। संपूर्ण साहित्य, वांगमय, परिकथा, कथाओं व संचार माध्यम का वाचन-श्रवण भी इन्ही अर्थों में सुनने में आता है। वर्तमान के आदर्शों के आधार पर ही जनचर्चा होना देखा गया है। इसी के साथ तमाम अपराधिक घटनाएँ और बर्बरताएँ जनचर्चा के माध्यम से सुनने में आती हैं। उल्लेखनीय है कि उक्त सभी बातों को जनमानस सामान्य कार्यकलाप के रूप में स्वीकार कर रहा है। किन्तु अपराध, लूट-खसोट, छीना-झपटी जैसे कार्यों को स्वयं के साथ घटित होते हुए स्वीकार नहीं पाता है। घटित हुई घटना दोनों प्रकार से जनमानस चर्चा की वस्तु बनाती है। जैसे किसी देश-देश के साथ युद्ध होना या युद्ध के लिए प्रस्तुत होने वाले वक्तव्य, युद्ध का अंतिम परिणाम जिसमें किसी की हार जीत होती है, को कुछ लोग उचित ठहराते हैं, कुछ लोग अनुचित ठहराते हैं। उचित अनुचित ठहराते समय यही लोकचर्चा में रहता है कि बड़ा अत्याचार किया था इसीलिए राज्य का पतन होना जरूरी था। दूसरे तरीके से कभी-कभी यह भी समीक्षा सुनने में आती है कि जो पराजित हुए वे मूर्ख थे इसीलिए हार गये। इसी प्रकार जीते हुए देश के संबंध में भी में उचित-अनुचित के रूप में जनमानस चर्चा करते ही हैं।

घटनाक्रम में किसी परिवार के साथ भी उचित अनुचित के रूप में इसी प्रकार गाँव, मुहल्ला में भी जनचर्चा होते हुए देखने को मिलती है। यह तो सर्वविदित है, कि सम्पूर्ण प्रचार तंत्र, अपराध और श्रृंगारिकता के अतिरिक्त और कोई ज्ञानवर्धन करा नहीं पा रहे है। शिक्षा के नाम से जो कुछ भी प्रचार करते हैं, वे सब न्यून प्रभावी रहते हैं, अपराधिक और श्रृंगारिक प्रभाव के सामने नगण्य हो जाते हैं।

जनचर्चा शिक्षा सहज मानसिकता, समुदाय परंपरा सहज मानसिकता और प्रचार माध्यमों की मानसिकताएँ प्रधान रूप में हर मानव पर प्रतिबिम्बित होती ही हैं। हर वर्तमान में इसका निरीक्षण, परीक्षण किया जा सकता है। मानवकुल अनेक समुदायों के रूप में दृष्टव्य है। समुदायों के बनने

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