शरीर के साथ आयु मर्यादा की गणना हो पाती है, शरीर परिणामकारी होना स्पष्ट है। आयु मर्यादा हमेशा प्रभावशील रहता ही है। इसी के साथ कार्य प्रवृत्तियाँ मेधस तंत्र द्वारा संवेदनशील और संज्ञानशील कार्यक्रमों को स्पष्ट कर देती है। जीवन में ही संवेदनशीलता का, संज्ञानशीलता का आस्वादन हो पाता है। संज्ञानशीलता जीवन का स्वत्व होना पहले से ही सुस्पष्ट हो चुका है। समझदारी अर्थ स्वीकृति के साथ जीवनगत होना, जीवन ही दृष्टा पद में होना इसलिए दृष्टा (जीवन एवं शरीर का संयुक्त रूप में), कर्ता, भोक्ता होना देखा गया है।
हम इस प्रमाण को पहचान सकते है कि जीवन ही दृष्टा है और शरीर को जीवन्तता प्रदान करता है। जीवन्त शरीर में ही संवेदना स्पष्ट होती है। जीवन अपने कार्य गतिपथ के साथ इकाई होना स्पष्ट हो गया है। कार्य गति पथ के साथ ही जीवन पुंज के मूल में एक गठनपूर्ण परमाणु चैतन्य इकाई के रूप में होना जिक्र किया जा चुका है। यही जीवन पद है। जीवन पद अपने में संक्रमण क्रिया है। संक्रमण का तात्पर्य जिस अवस्था पद प्रतिष्ठा में पहुँच चुके उससे पीछे की स्थिति में नहीं जा पाना। यह भी एक स्वयंस्फूर्त स्थिरता का प्रमाण है। जीवन पद में प्रतिष्ठित होने के उपरान्त रासायनिक भौतिक क्रियाकलाप का दृष्टा हो जाता है। जीवन अपने में रासायनिक भौतिक क्रियाकलापों से अछूता रहते हुए रासायनिक भौतिक द्रव्य से रचित शरीर को जीवन्त बनाये रखना जीवन को स्वीकृत है।
जीवन की स्वीकृति अपने में निरन्तर बनी ही रहती है। इसी क्रम में हर जीवों को वंशानुषंगी शरीर क्रिया के अनुसार जीवंत बनाये रखता है। अर्थात् संवेदनशीलता का प्रमाण प्रस्तुत कर देता है। ऐसे ही संवेदनाओं को प्रमाणित करने के क्रम में अलग-अलग पहचान उन उन के आचरणों के रूप में प्रस्तुत हो गई है।
जीवन मानव शरीर को भी जीवन्त बनाए रहता है इसी के साथ जीवन अपनी तृप्ति को क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के रूप में प्रमाणित करने को प्रयासरत रहता है। इसी महत्वपूर्ण कारणवश संवेदनाओं से जीवन तृप्ति नहीं हो पाई। इसका प्रमाण हर मानव में जागृति क्रम, जागृति का परीक्षण, निरीक्षण हो पाना है। इसी सत्यतावश हम सार्थक संवाद के मुद्दे के रूप में इसे स्वीकार सकते है।
मानव में यह सुस्पष्ट होता है कि हर संवेदना के प्रयोग के उपरान्त भी उस संवेदनशील क्रिया से मुक्ति पाना चाहता है इस विधि से इस निष्कर्ष में आते है कि मानव पाँचों संवेदनशील क्रियाओं में तृप्ति बिन्दु पाया नहीं। इसका ज्वलंत उदाहरण मानव सर्वाधिक संग्रह सुविधा संवेदनाओं की