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तृप्ति के लिए ही जोड़ा और आगे पीढ़ी की आवश्यकता है इसे सोचा। इन ही तथ्यों के आधार पर मानव अपार संग्रह सुविधा को पाते हुए अथवा जो पाये है उनमें तृप्ति का प्रमाण तो हुआ भी नहीं, और संग्रह सुविधा की प्यास अति की ओर होता हुआ मिला। यह ही इस बात का द्योतक है तृप्ति बिन्दु और कहीं है।

तृप्ति के लिए हर मानव तृषान्वित है ही। इसका निराकरण समाधान पूर्वक होना देखा गया। समाधान अपने आप में सुख रूप में अनुभूति होना पाया गया। अनुभूति की निरंतरता होना भी स्पष्ट हुआ। इसकी पुष्टि में ही समाधान समझदारी की आवश्यकता निर्मित हुई, समझदारी के साथ ही हम हर कोण, आयाम, दिशा, परिप्रेक्ष्यों में हर देश कालों में जागृत परम्परा के आधार पर अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्रमाणित होना बनता है।

इस तथ्य को भली प्रकार से देखा गया है, समझा गया है, कि हर मानव तृप्ति पूर्वक ही जीने का इच्छुक है। ऐसी तृप्ति सुख ,शांति, संतोष, आनंद के रूप में पहचान में आती है। ऐसी पहचान जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के फलस्वरुप प्रमाणित होना पायी गयी। सुख, शांति, संतोष, आनंद अनुभूतियाँ समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व का प्रमाण के रूप में परस्परता में बोध और प्रमाण हो जाता है। ऐसी बोध विधि का नाम ही है शिक्षा-संस्कार। शिक्षा का तात्पर्य शिष्टता पूर्ण अभिव्यक्ति से है। ऐसी शिष्टता अर्थात् मानवीयतापूर्ण शिष्टता समझदारी पूर्वक ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी के रूप में प्रमाणित होना पाया जाता है। इसकी आवश्यकता के लिए जनचर्चा भी एक अवश्यंभावी क्रियाकलाप है। जनसंवाद अर्थात् मानव में परस्पर संवाद प्रसिद्ध है। संवाद के अनन्तर संवेदनशीलता का ध्रुवीकरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया रही है। ये प्रक्रियाएं क्रम से तृप्ति की अपेक्षा में ही संजोया हुआ पाया जाता है। सभी मानव संवेदनशीलता से परिचित है ही, संज्ञानशीलता की आवश्यकता शेष रही ही है। समस्या समाधान के क्रम में प्रदूषण के संबंध में सोचना और निष्कर्ष निकालना हर मानव का कर्तव्य बन गया है। क्योंकि इससे उत्पन्न विपदाएँ हर मानव के लिए त्रासदी का कारण बन चुकी है। इससे उत्पन्न विपदाएं हर मानव के लिए त्रासदी का कारण बन चुकी है। इससे मुक्ति पाना हर मानव के लिए आवश्यक है। वन, खनिज, औषधि संपदाएं समृद्ध रहने की स्थिति में ऋतु संतुलन, वन वनस्पति औषधियों के अनुकूल रूप में परिणीत होने के उपरान्त मानव का अवतरण धरती पर आरंभ हुआ है। और मानव अपने तरीके से सोचते समझते मनाकार को साकार करने के क्रम में वन, खनिज, औषधि, जलवायु संपदा को उपयोग, प्रयोग, परीक्षण, निरीक्षण,

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