1.0×

इसकी गवाही यही है यह धरती वन खनिज से संतुलित होने के उपरान्त ऋतु संतुलन होना स्वाभाविक रहा। इसी क्रम में वन खनिज संतुलन के बाद वन्य प्राणियों में संतुलन, समृद्वि के उपरान्त ही मानव का अवतरण, इस धरती पर अवतरित होना स्वाभाविक रहा। मानव ज्ञानावस्था की इकाई के रूप में इस धरती पर अपनी अभिव्यक्ति को मनाकार को साकार करने के साथ-साथ मन:स्वस्थता से समृद्ध नहीं हो पाया। यही मानव कुल में अवांछनीय घटनाओं का कारण बन गया। मानव को मन:स्वस्थता को प्रमाणित करने के क्रम में प्रवृत्त होना आवश्यक है। इन्हीं सब तथ्यों का परिशीलन करने के उपरान्त यह स्पष्ट होता है तत्काल मानव कुल से, नियति विधि से, प्राकृतिक विधि से, व्यवहार विधि से जितने भी उपद्रव, क्लेश, कष्ट, समस्याएँ निर्मित होते जा रहे हैं वे सब समाप्त हो सकेंगे। तभी मानव का नियति सम्मत, प्रकृति सम्मत, स्वस्थ मानव सम्मत विधियों से जीना हो जाता है।

हम मानव सदा से उत्पीड़नों से मुक्त होना चाह ही रहे हैं। किन्तु ऐसी मुक्ति का ज्ञान, विज्ञान, उपाय, विवेक समृद्ध होने का क्रम शिथिल है ही। इसका साक्ष्य यही है किसी समुदाय परम्परा में अखण्ड समाज का सूत्र, व्याख्या, सार्वभौम व्यवस्था का सूत्र व्याख्या, राज्य संविधान, शिक्षा धर्म संविधान विधि से प्राप्त नहीं हुआ। इसी कारणवश अप्रत्याशित घटनाओं के चक्कर में आ चुके हैं। अप्रत्याशित घटनाओं को इस तरह से पहचाना जा रहा है। सर्वप्रथम प्रदूषण, द्वितीय धरती का तापग्रस्त होना, तृतीय दक्षिणी उत्तरी ध्रुव का बर्फ पिघलकर समुद्र का स्तर बढ़ना, चौथा अनेक नये-नये रोग मानव परम्परा में आक्रमित होना, पाँचवां धरती, आकाश, अधिकांश पानी में किये गये विकिरणीय परीक्षणों से भूकम्प की सम्भावनायें और घटनायें बढ़ जाना, छठा सामरिक तंत्रों का ज्यादा से ज्यादा जखीरा बनना, सातवां अनानुपाती विधि से वन खनिज का शोषण होना, आठवां रसायन खाद और कीटनाशक द्रव्यों का सर्वाधिक उपयोग होना, नवां मिलावट का बढ़ोत्तरी होना, ये सब मानव कुल क्षति ग्रस्त होने तैयार कर लिए हैं। जन संवाद में इन सभी मुद्दों पर परिचर्चा, चर्चा, संवाद पूर्वक निष्कर्षों का निकालना एक आवश्यक क्रिया है।

उक्त बिन्दु सभी ज्ञानी, अज्ञानी, विज्ञानी, अधिकारी, कर्मचारी, नेताजनों को विदित है ही। इसके बावजूद विपरीत परिस्थितियों के लिए प्रोत्साहनवादी कार्य करते हुए देखने को मिलते है। इनमें से अज्ञानी और गरीब कहलाने वालों की उक्त नौ प्रकार के अपराधों में न्यूनतम सहभागिता है। गरीब-अमीर, ज्ञानी-अज्ञानी, विद्वान-मूर्ख, बली-दुर्बली ये चार प्रकार की सविपरीत

Page 68 of 141
64 65 66 67 68 69 70 71 72