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सर्वेक्षण पूर्वक इनके साथ अपनी अनुकूलता के लिए प्रयोग करता ही आया। इस क्रम में सर्वाधिक वनों का विध्वंस और खनिजों का शोषण होना पाया गया।

सही अध्ययन मानते हुए शुरूआत से अभी तक विज्ञान सम्मान पाया है। जनमानस में अर्थात् जो विज्ञानी नहीं है उनमें विज्ञान का सम्मान स्थापित हुआ। इसके बावजूद वन खनिजों का विध्वंस, खनिज के शोषण को नियति विरोधी होना पहचान नहीं पाया। ईंधन को हम वन से, खनिज कोयला से, और विकिरणीय धातुओं के आवेशन प्रणाली से प्राप्त किये। इसी का अवशेष प्रदूषण के लिये सम्पूर्ण कारण बन पड़ा है। यह भी एक मुद्दा है, जनचर्चा है, कि इससे विज्ञान संसार चिन्तित होने की आवश्यकता है कि नहीं? इस मुद्दे पर विस्तृत विचार संवाद की आवश्यकता है ही। यह तथ्य हमें समझ में आया है कि मानव अज्ञानी हो, मूर्ख हो, किन्तु सामान्य ज्ञान से संपन्न रहता है। ऐसा सामान्य ज्ञान संवेदनशीलता की पहचान के रूप में गवाहित रहता है। ऐसे व्यक्ति भी किसी आपदाओं को स्वीकार नहीं पाते, तथा इसके निवारण का उपाय भी सूझ में आना चाहिये। मानव का संवाद परस्परता में अभ्यस्त होते-होते तर्क सुलभ कर ही लेता है। क्योंकि हर मानव में संवेदनशीलता और संज्ञानशीलता का झलक बना ही रहता है। इसी आधार पर तर्क अपने आप से संवेदनशीलता के ढांचे-खांचे में पहुँच ही जाते है। इसी क्रम में हर मानव में इस तथ्य को चर्चा में लाने का अपेक्षा होना, प्रयास होना आवश्यक है।

प्रदूषण का मूल रूप ईंधन अवशेष तभी रूक सकता है जब ईंधन अवशेषवादी द्रव्यों का प्रयोग बंद कर दिया जाय। इसमें सर्वप्रथम खनिज कोयला तेल को बंद करना परम आवश्यक है। इसके बाद या इसी के साथ विकिरणीय द्रव्यों का आवेशण से प्राप्त करने वाली उष्मा पद्धतियों को सर्वथा त्याग देना चाहिए। क्योंकि जितने भी विकिरणीय पदार्थ है वे सब ब्रम्हांडीय किरणों के रूप में कार्यरत रहने के लिये बने है। ब्रम्हांडीय किरणें सदा-सदा रासायनिक भौतिक क्रियाओं को सुदृढ़ और क्रमिक विकास से जोड़ने का अनुपम कार्य करती रहती है। इसको समझने की आवश्यकता है।

इस धरती पर अथवा इस धरती में विकिरणीय पदार्थों का होना स्वयंस्फूर्त विधि से व्यवस्थित है। व्यवस्थित होने का तात्पर्य विकिरणीय पदार्थ अजीर्ण परमाणु के रूप में धरती में स्थित है। यह विकिरणीयता धरती को समृद्ध बनाने में सहायक होता हुआ इस ढंग से गवाहित हुई कि धरती पर पानी विकिरणीय विधि से अथवा विकिरणीय पद्धति से बना। पानी के बाद भी इस धरती को वन से खनिज से संतुलित रूप में सजाने के लिये विकिरणों का योगदान बना रहा।

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