स्थितियाँ सुदूर विगत से पहचानने में आई है। क्या इसे यथावत रहने देना है या इसका उपाय खोजना चाहिए। इस पर हमारे सोच विचार को विशाल रूप देने पर तथा सर्वशुभ को ध्यान में लाने पर यह पता लगता है अस्तित्व में इस प्रकार की दूरी का कोई आधार नहीं है। मानव परम्परा में चारों प्रकार से बनी दूरी मानव में, से, के लिए तैयार की गई है। तर्क विधि से जो बना है वह मिट भी सकता है। इस सिद्धान्त का प्रयोग मानव के साथ जुड़ा हुआ दिखाई देता है। अतएव मानव ही इसे दूर करने में समर्थ है क्योंकि मानव ही इसका कारण होना स्पष्ट हो गया है। इस बात को हम भली प्रकार से समझ चुके है। ज्ञान विद्वता को लोकव्यापीकरण करने के क्रम में उनकी दूरियाँ समाप्त होना स्वाभाविक है। सहअस्तित्ववादी विधि से ज्ञान और विद्वता का लोकव्यापीकरण का प्रमाण ही हर परिवार समाधान, समृद्धि सम्पन्न होना। इससे गरीबी अमीरी की दूरी समाप्त होना स्वाभाविक है।
चौथा मुद्दा बली-दुर्बली की बात आती है, इस मुद्दे पर समझदार मानव परिवार होने के उपरान्त दुर्बल के साथ दयापूर्वक व्यवहार करने का आवश्यकता आता ही है। कोई दुर्बली होता है वह भी किसी परिवार में होता है अन्य के साथ उसका संबंध बना ही रहता है। हर समझदार परिवार में आयु, स्वास्थ्य विविधता रहती ही है। आयु अपने में नियतिक्रम वर्तमान है ही। अभी तक मानव द्वारा अपने अपने समुदाय परिवार व्यक्ति के संदर्भ में संग्रह सुविधा को एकत्रित करने के लिए नौ प्रकार की गलतियाँ किया जाना देखा जा रहा है। इसलिए स्वास्थ्य विधा में जब तक प्रकृति अर्थात् वन, खनिज, औषधी, द्रव्य वनस्थ जीवों और जीवों में संतुलन और ऋतु संतुलन पुन: उदय होने तक बली दुर्बली की सम्भावना बनी रहती है। इसका निराकरण समाधान समृद्धि पूर्वक जीने वाली परिवार व्यवस्था और समाधान समृद्धि अभय सम्पन्न अर्थात् वर्तमान में विश्वास सम्पन्न अखण्ड समाज व्यवस्था और समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व पूर्वक जागृत परम्परा को प्रमाणित करने वाली व्यवस्था प्रमाणित होने पर ही संभव है। इन सभी तथ्यों को हृदयंगम करने के लिए सकारात्मक पक्ष में दृढ़ मानसिकता के रूप में जनचर्चा और संवाद एक आवश्यक कार्यक्रम है। यह सब जागृत परम्परा की महिमा है। जागृत परम्परा में हर मानव की परस्परता न्याय और विश्वास सूत्र से जुड़ी रहती है। न्याय सूत्र का मतलब परस्पर संबंधों की पहचान, निर्वाह, उसकी निरन्तरता ही है। ऐसी निरन्तरता विश्वास नाम से ख्यात है। ऐसी स्थिति हर मानव के लिए शुभ, सुन्दर, समाधान के रूप में अनुभूति होना, अभिभूत होना, समाधान सम्पन्न होना समृद्धि का अनुभव होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। समृद्धि सहज अनुभूति परिवार में होना पाया गया है। क्योंकि परिवार में सीमित संख्या में सदस्यों का होना और उन सबके