तात्पर्य निपुणता, कुशलता, पाण्डित्य पूर्वक किये जाने वाली कृत कारित अनुमोदित कार्यों से है। ऐसे कार्य को हर व्यक्ति सम्पादित करने के प्रयास में प्राय: हर मानव में यह प्रवृत्ति दृष्टव्य है। इस मुद्दे में ध्यान देने का तथ्य इतना ही है जागृति पूर्वक हम समाधान परम्परा को बना पाते है। भ्रम पूर्वक समस्याओं को तैयार कर देते हैं, जैसे पहले कहे गये नौ प्रकार के अति क्लिष्ट समस्याएँ हैं। अतएव जनचर्चा और मानसिकता का इसमें प्रधान प्रावधान है।
मन के मुद्दे पर पहले ही स्पष्ट हो चुकी है कि जीवन शक्तियाँ अक्षय है न तो मन घटता है न बढ़ता है इसलिए इस का प्रमाण हर व्यक्ति है। प्रत्येक नर-नारी में जितने भी आस्वादन, चयन होते हैं उसके उपरान्त में और चयन आस्वादन की मानसिकता बनी रहती है। इसे हर मानव में सर्वेक्षण कर सकते है। हर मानव द्वारा इसे स्वीकारने में भी कोई कठिनाई नहीं है। प्रत्येक में निरीक्षण करना स्वाभाविक क्रिया है। मानव में मनोप्रवृत्तियों को कार्यरूप और फलस्वरुप में देखने का अरमान सदा-सदा से ही निहित है। निहित रहने का तात्पर्य हर मानव में प्रमाणित अथवा वर्तमानित रहने से है। इस ढंग से मानव अपने स्वस्थ कार्यकलाप स्वस्थ मानसपूर्वक ही सम्पादित कर पाता है। स्वस्थ मानस अनुभवमूलक मानसिकता है। अनुभव अपनी सम्पूर्णता में सहअस्तित्व ही है। इन तथ्यों पर चर्चा निष्कर्ष मानव कुल के लिए उपयोगी होना पाया जाता है।
नीति का तात्पर्य नियति विधि से अर्थात् नियति क्रम, नियति लक्ष्य के संतुलित कार्यकलाप से है। प्रणाली का तात्पर्य सोपानित कार्यक्रमों को पहचानना, निर्वाह करना या दूसरी विधि से कड़ी से कड़ी जुड़ी हुई है। तीसरे विधि से लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया गया सम्पूर्ण क्रियाकलाप मुख्य मुद्दा लक्ष्य प्रमाणित होने से है।
पद्धति का तात्पर्य किसी भी लक्ष्य के लिए जितने भी उपकरण साधन होते है, इन सबको सार्थकता के लिए सजा देने से जैसे मानव निपुणता पांडित्य स्वत्व है इसे पाना लक्ष्य है। इसके लिए मन तो तत्पर होना आवश्यक है शरीर भी सँजोए रहना उतना ही आवश्यक है। यह संतुलित रहना पद्धति है। इसी प्रकार घर बनाना उसके लिए मिट्टी पत्थर जो कुछ भी द्रव्य है उनको विधिवत संजो देने से घर बनता ही है इसमें गलती होने से घर गिरता है। अस्तु हर लक्ष्य के लिए जितने भी साधन होते हैं उसको सार्थकता के अर्थ में सजाना है। इस विधि से स्पष्ट होता है हर लक्ष्य को पाने के क्रम में पद्धति, प्रणाली, नीति की आवश्यकता है।
[88q88\