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व्यवहार मानव की स्वयंस्फूर्त प्रवृत्ति है। जीव संसार की प्रवृत्ति कार्य है। सभी जीव वंशानुषंगी विधि से कार्य प्रवृत्ति में है। इसे हर व्यक्ति परीक्षण कर सकता है। क्योंकि गाय की संतान गाय जैसे कार्यों में प्रवृत रहती है। इसकी संवेदनशीलता सीमा है। संवेदनशीलता पूर्वक ही जीव संसार का वैभव निश्चित होता है। वैभव निश्चित होने का तात्पर्य आचरण निश्चित होने से है।

हर जीवों की संवेदनशील प्रक्रियाएँ निश्चित रहना ही आचरण का निश्चय है। सुनिश्चित आचरण के आधार पर ही हर मानव समस्त प्रकार के जीवों को पहचानता है। फलस्वरूप आवश्यकता अनुसार कुछ जीवों को नियंत्रित करता अर्थात् पालता और उपयोग करता है। यह सर्वविदित तथ्य है। इसका तात्पर्य यह हुआ जीव संसार संवेदनशीलता की निर्वाह विधि से प्रमाणित आचरण का स्वभाव नाम है। इसी क्रम में जीव संसार का मूल्यांकन स्वभाव के अनुसार और हर जीवों को जीने की आशा सहित होना पाया जाता है। इसलिए जीव संसार आशाधर्मी होना पाया गया है।

वनस्पति संसार बीज वृक्षानुषंगी अर्थात् बीज से वृक्ष, वृक्ष से बीज होना सर्वविदित है। वनस्पतियों की पहचान गुणों के आधार पर विदित है। वनस्पतियों में सारक-मारक गुण होना पाया जाता है। सारक गुण का तात्पर्य जीव संसार के लिए अनुकूल होना चाहिये। मारक का तात्पर्य प्रतिकूल होने से है। वनस्पति संसार बीज गुणानुषंगी पहचान है। इसका आचरण गुणों को प्रमाणित करने के अर्थ में निश्चित होना पाया जाता है। इस प्रकार नीम, तुलसी, आम, दूब, बेल, मालती आदि सभी वनस्पतियों को पहचानना मानव में, से, के लिए अति सुलभ हो गया है। इस क्रम से मानव द्वारा वनस्पतियों को पहचानने का आधार बीज गुणानुषंगी होना पाया गया है। इस विधि से वनस्पति संसार को पुष्टि धर्म के साथ पहचाना गया है। वनस्पति किसी न किसी पुष्टि प्रदान करता ही है। स्वयं में भी पुष्टि संग्रहण करता है। वनस्पति संसार अमूल्य वस्तु है। वनस्पति संसार मानव शरीर संचालन के लिए अति आवश्यक है। वायु को तैयार करने में समर्थ है इसी क्रियाकलाप को प्राणवायु की सृजनशीलता अथवा अपान वायु को प्राण वायु में परिवर्तित करने का कार्य वनस्पति संसार में ही होता है। इसका मूल्यांकन अथवा इस पर ध्यान देना मानव कुल के लिए अति आवश्यक मुद्दा है।

प्रदूषण से प्राण वायु का शोषण बढ़ता जा रहा है। और प्राण वायु की सृजनशीलता घटती जा रही है। इससे मानव कितने खतरे में आ रहा है इसे समझना आवश्यक है। यदि प्राण वायु इतना घट जाये, हमारे श्वास में प्राण वायु आवश्यकता से कम हो जाये तो क्या स्थिति रहेगी। मानव

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