शरीर में प्राण वायु का सेवन होता है। अपान वायु का विसर्जन होता है। वनस्पति संसार में अपान वायु का सेवन होता है प्राण वायु का विसर्जन होता है। इस ढंग से प्राणावस्था, जीव और मानव शरीर के लिए पूरक होना और जीव एवं मानव वनस्पति संसार के लिए पूरक होना पाया जाता है। इस प्रकार मानव अपनी स्वस्थ मानसिकता के साथ परिशीलन करने पर पता चलता है कि इसके संतुलन को बनाए रखना अतिआवश्यक है। संतुलन बनाए रखने का दायित्व मानव के माथे पर टिकता है। इस दायित्व को स्वीकारने के उपरान्त ही ऊपर कही गयी दुर्घटनाओं का उन्मूलन होगा।
जागृति में संक्रमित होने के उपरान्त मानव में मानवीय व्यवस्था उदय होना पाया जाता है। उसके पहले जागृति क्रम में रहते हुए अमानवीय विधि से अर्थात् जीवों के सदृश्य रहते है। अव्यवस्था के चपेट में आ जाते है। यही समस्या से घिर जाने का तात्पर्य है। जागृति के अनन्तर ही मानव और मानवीयता की अविभाज्य वर्तमानता तथा शरीर और जीवन के संयुक्त प्रकाशन में मानव परम्परा होने अर्थात् विवेक और विज्ञान सम्पन्न हो पाते हैं। हर मानव जागृत होने योग्य है प्रकारान्तर से हर मानव जागृति को ही सम्मान कर पाता है। इसके मूल में मानव की परिभाषा ही मुख्य बिन्दु है। सन् 2000 के पहले दशक में यह सौभाग्य समीचीन है कि मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद के नजरिये में हर समस्या का समाधान पाना संभव हो गया है। लोकव्यापीकरण होने की अपेक्षा में व्यवहारात्मक जनवाद प्रस्तुत हुआ है।
जागृत मानव परम्परा में मानवीय शिक्षा-संस्कार को पहचान लेना स्वाभाविक है। जिसमें सहअस्तित्ववादी विधि से सम्पूर्ण ताना बाना होना पाया जाता है। इसमें मानव अपने मानवत्व को पहचानना सहज हो जाता है मुख्य मुद्दा यही है। मानवत्व का पहला सूत्र मानवीयतापूर्ण आचरण सहित परिवार में व्यवस्था का प्रमाण और समग्र व्यवस्था में भागीदारी। इस व्याख्या के समर्थन में भौतिक, रासायनिक और जीवन क्रियाओं को, उन-उन में त्व सहित व्यवस्था सहित पहचानने, जानने, मानने की विधि से लोकव्यापीकरण योग्य होना पाया जाता है। मानवीय शिक्षा में मानव का अध्ययन सर्वाधिक होना चाहिए जबकि अभी तक शिक्षा का आधार और स्वरूप भौतिकवाद और आदर्शवाद के आधार पर रहा।
भ्रम विधि से श्रृंगारिकता पहचानने का कार्यक्रम बना, पराक्रम को पहचानने की विधि बनी और उपकार को भी पहचानने का प्रयास जारी रहा। सुविधा संग्रह का स्त्रोत व्यापार हुआ। नौकरी भी व्यापार का ही निश्चित ढाँचा-खाँचा है। सौंदर्य को संवेदनशीलता पर और संवेदनशीलता को