उपकार प्रवृत्ति की परिवार समूह, ग्राम, ग्राम समूह, क्षेत्र, मंडल, मंडल समूह, मुख्य राज्य, प्रधान राज्य, विश्व परिवार राज्य सभा में भागीदार के लिए प्रस्तुत होना होता है। यही समग्र व्यवस्था में भागीदारी का स्वरूप है। इस क्रम में हर परिवार अपने में से एक व्यक्ति को समग्र व्यवस्था में भागीदारी जैसे पावन और उपकारी कार्य के लिए अर्पित करना एक अनुपम स्वरूप है। ऐसे ही हर व्यक्ति और परिवार में मर्यादा सम्पन्न मानवीयता पूर्ण आचरण के साथ सहज रूप में तृप्त होना स्वाभाविक है। इस मुद्दे पर जनचर्चा की आवश्यकता है यह अति आवश्यक है। यह मुद्दा सार्थक है कि नहीं, इसे भी परामर्श करना आवश्यक है।
सुदूर विगत से राज्य और धर्म गद्दी का प्रचलन रहा है। लोक मानसिकता भी भय और प्रलोभन के आधार पर इनका सम्मान करते रहे है। राज्य शासन में भी भय और प्रलोभन और धर्मशासन में भी भय प्रलोभन बना रहा। इससे छुटने का कोई रास्ता ही नहीं रहा। कुछ समय के उपरान्त संयोग हुआ सर्वाधिक राज्य गद्दी, राज्य शासन से गणतंत्र शासन में परिवर्तित हो गई। इस परिवर्तन में, इस गणतंत्र शासन में जनप्रतिनिधि गद्दी परस्त होने की विधा रही। यह व्यवस्था भी शक्ति केन्द्रित शासन संविधान व्यवस्था कहलायी। ऐसे संविधान के तले जन प्रतिनिधि प्रचलित ज्ञान विवेक को लेकर आसीन होता हुआ देखा गया। ऐसे जन प्रतिनिधि देश की सीमा सुरक्षा ध्यान में रखते हुए देश वासियों को शान्ति पूर्वक रहने का प्रबंधन करने का आश्वासन देते रहे है। ऐसे क्रम में प्रधान गद्दी बैठा व्यक्ति जन अपेक्षाओं उस में से कुछ पूरा कर पाना कुछ नहीं कर पाना होता है। मुख्य मुद्दा यही है सबके लिये संतुष्टि कैसे मिले? करीब करीब सभी राज्य ऐसी जगह में पहुँच गये है। जनमानस की संतुष्टि केवल पैसे से है, पैसे को कैसे सबको उपलब्ध कराया जाय, सोचने जाते है, सोचने के लिए परीक्षण, निरीक्षण, सर्वेक्षण करते भी है। यह भी देखने को मिला एक दूसरे को कलंकित करना नेतागिरी का प्रमुख कार्य माना गया। इस झांसा पट्टी में लोक कल्याण, जन कल्याण, जन समुदाय कार्य सब छिन्न-भिन्न एवं दिशाविहीन रहे आया हुआ पाया गया।
कमोवेश ऐसी घटनायें सभी देशों में होती गयी। इसके बावजूद भी पुन: लोकमानस के लिये अथवा लोकमानस को रिझाने के लिये, पद पैसे से रिझाने की प्रक्रिया अपनाते बारम्बार कलंकित होते रहे। इसके मूल कारण को परिशीलन करने से पता लगा की निर्वाचन कार्य में मत संग्रह के लिए अपार धन का नियोजन, स्वयं में नोट और वोट का गठबंधन प्रमाणित हुआ। फलस्वरूप पद का बंटवारा, पैसे का बंटवारा शुरू हुआ। उसमें संतुष्टि-असंतुष्टि अपने आप में