को अलग अलग मान लेते है। जबकि ये सब मानव ही रहते है। यही मूलत: स्वयं में अविश्वास का आधार रहा है। क्योंकि स्वयं का स्वरूप मानव ही होता है और कुछ भी नहीं होता है। हर समुदाय में प्रतिबद्ध मानव अन्य समुदायों से भिन्न मानना एक आदत बनी रहती है। आदतन अपने को जब मानव गिरफ्त कर लेता है अन्धकूप में हो जाता है। गिरफ्त होने का मतलब जो सर्व स्वीकृति की वस्तु न हो, ऐसी वस्तु (स्वयं स्वीकृति) में प्रतिबद्धता आ जाये, कट्टरता आ जाये, बर्बरता आ जाये, यही गिरफ्त होने का प्रमाण है। हर समुदाय या कोई भी समुदाय इस प्रकार की गिरफ्त में न तो स्वराज्य पाता है न स्वतंत्रता को पाता है, न व्यवस्था को पाता है। परिणाम स्वरूप व्यवहार मानव हो ही नहीं सकता।
हम मानव अपने में देख रहे हैं हर समुदाय में अन्तर्विरोध और परस्पर समुदायों में विरोध है। विरोध समाज का सूत्र नहीं है व्याख्या नहीं है। इसी लिए समुदाय संविधान सार्वभौम होना संभव नहीं हुआ इसलिए मानवीय संविधान को पहचानने की आवश्यकता आ चुकी है। इस पर परामर्श आवश्यक है। मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान मानव के पहचान के आधार पर ही आधारित रहेगा। मानव की पहचान अपने में परिभाषा, आचरण, व्यवस्था और व्यवस्था में भागीदारी का संयुक्त वृत में स्वीकार होती है। मानव की परिभाषा मनाकार को साकार करने वाला मन:स्वस्थता को प्रमाणित करने वाला है। मनाकार को मानव आहार, आवास, अलंकार, दूरश्रवण, दूरगमन, दूरदर्शन के रूप में प्रस्तुत किया है। जहाँ तक मन:स्वथता को प्रमाणित करने की बात आती है इस मुद्दे पर सोच विचार तैयार नहीं हुए, चाहत सभी में है। इसके लिए सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व को समझने समझाने का, जीवन ज्ञान को समझने समझाने का, मानवीयतापूर्ण आचरण को समझने समझाने का अधिकार अर्हता सहित पारंगत होने के आधार पर इस परिभाषा को मानव के सम्मुख रखा गया है। समझदारी में पारंगत होने के उपरान्त ही मानव की परिभाषा स्वाभाविक रूप में स्पष्ट हो गई। इसी आधार पर हम विश्वास करते है कि समझदारी का लोकव्यापीकरण होना स्वाभाविक है। समझदारी ही मानव परिभाषा के अनुसार प्रमाण हो पाता है अन्यथा हम परिभाषा के अनुरूप प्रस्तुत नहीं हो पाते।
मानवीयता पूर्ण आचरण को सहअस्तित्व रूपी दर्शन के आधार पर जीवन ज्ञान के आधार पर पहचाना गया है। मानवीयतापूर्ण आचरण का पहला आयाम संबंधों को पहचानना, मूल्यों का निर्वाह करना, मूल्यांकन करना, परस्परता में तृप्ति को पाना। दूसरा आयाम में स्वधन, स्वनारी-स्वपुरूष, दयापूर्ण कार्य करना। तीसरे आयाम में तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग सुरक्षा