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करना। तन, मन, धन रूपी अर्थ के सदुपयोग का तात्पर्य परिवारगत आवश्यकता के अनुसार शरीर पोषण संरक्षण और समाज गति में नियोजित करना। मानव समाज अखंड समाज ही होता है। समाज गति का तात्पर्य अखंड समाज के अर्थ में भागीदारी करना अर्थात् सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करना।

परिवार व्यवस्था से विश्व परिवार व्यवस्था तक समाज गति के अर्थ को ध्वनित करता है, यह ध्वनि परिवार में न्यूनतम होकर विश्व परिवार में सर्वाधिक विशाल हो जाती है, इस बीच क्रम विधि से परिवार व्यवस्था से परिवार समूह व्यवस्था, परिवार समूह व्यवस्था से ग्राम मोहल्ला परिवार व्यवस्था, ग्राम मोहल्ला परिवार व्यवस्था से ग्राम मोहल्ला परिवार समूह सभा, ग्राम मोहल्ला समूह व्यवस्था से क्षेत्र परिवार व्यवस्था, क्षेत्र परिवार व्यवस्था से मंडल परिवार व्यवस्था, मंडल परिवार व्यवस्था से मंडल समूह परिवार व्यवस्था, मंडल समूह परिवार व्यवस्था से मुख्य राज्य परिवार व्यवस्था, मुख्य राज्य परिवार व्यवस्था से प्रधान राज्य परिवार व्यवस्था, प्रधान राज्य परिवार व्यवस्था से विश्व राज्य परिवार व्यवस्था तक बुलंद होती जाती है यह व्यवस्था में भागीदारी की बुलंदी है। बुलंदी का मतलब मजबूती से है। इस प्रकार हर मानव अपनी पहचान को परिवारगत व्यवस्था से दश सोपानीय व्यवस्थाओं में पहचान बनाना सहज है।

प्रौद्योगिकी प्रक्रिया प्रणाली उसके साथ तकनीकी आरक्षण, यह कहाँ तक न्यायिक है। सम्पूर्ण ज्ञान लोकार्पित होना ही उसकी ख्याति है। लोकार्पण न हो पाना उसका ख्याति न होकर अज्ञान कहा जाता है। इस तर्क से यही स्पष्ट होता है प्रौद्योगिकी प्रणालियों का पेटेन्टीकरण मानव के हित में नहीं है। तकनीकी का लोकव्यापीकरण ही उसका सम्मान है। इस क्रम से ज्ञान की तीन विधाओं को पहचाने है अस्तित्व ज्ञान, जीवन ज्ञान, तकनीकी ज्ञान। इन तीनों प्रकार के ज्ञान का निपुणता-कुशलता-पाण्डित्य लोकव्यापीकरण करने की विधि से ही अभ्युदय होना स्वाभाविक है। अभ्युदय का तात्पर्य है सर्वतोमुखी समाधान पूर्वक जीने की सहज प्रक्रिया। जिसमें पहले से जिक्र किया हुआ प्रतिभा का छ: स्वरूप अपने आप में संतुलित रहना, प्रयोजनशील रहना पाया जाता है। इस विधि से सम्पूर्ण मानव इस धरती पर समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पूर्वक जीने का दिन उदय होगा। इस पर जनचर्चा से संगीतीकरण विधि प्राप्त करना आवश्यक है।

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