गलती करने वालो को सही करने की दिशा देने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके मूल में सभी मानव यदि समझदार होते है तो गलती और अपराध करेगें ही नहीं, गलती अपराध मुक्त होना ही समाधान सम्पन्नता है। समाधान सम्पन्न मानसिकता से हर व्यक्ति परस्परता में न्याय ही करता है अन्याय कर ही नहीं सकता। सभी मानव अपने में से न्यायिक होने के उपरान्त अन्याय का खतरा ही कहाँ है?
सारे अपराध, अन्याय और गलतियाँ मानव के नासमझी की उपज है। समझदारी के उपरान्त मानव का आचरण निर्धारित हो जाता है ध्रुव बिन्दु यही है। जब आचरण निश्चित, स्थिर, निरन्तर प्रभावशील होने लगता है तब भरोसा, विश्वास और सुन्दर कार्यक्रम उदयशील होते है यही समझदार व्यक्ति की महिमा है। समझदार मानव अपने में आश्वस्त रहकर विश्वास पूर्ण विधि से कार्य करने में समर्थ होता है। गलती, अन्याय मुक्ति के लिए हर नर-नारी में स्वयं में विश्वास, श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा (समझदारी) और व्यक्तित्व (आहार, विहार, व्यवहार) में संतुलन, व्यवसाय (उत्पादन) में स्वावलम्बन, व्यवहार में सामाजिक अर्थात् अखंड समाज में भागीदारी होना आवश्यकता है। यह मानव वैभव का मूल स्वरूप है। यह समझदारी का भी फलन है। पद, पैसा, सम्मान पर विश्वास किया जाए अथवा इन छ: महिमा में विश्वास किया जाए। इस पर जनचर्चा, विश्लेषण, निष्कर्ष की आवश्यकता है ही।
हर मानव स्वराज्य स्वतंत्रता चाहता ही है। स्वतंत्रता का स्वरूप यही है :
- स्वयं में विश्वास करने में स्वतंत्रता
- श्रेष्ठता का सम्मान करने में स्वतंत्रता
- प्रतिभा को लोकव्यापीकरण में स्वतंत्रता
- व्यक्तित्व को प्रमाणित करने की स्वतंत्रता
- उत्पादन में स्वावलंबी होने की स्वतंत्रता
- व्यवहार में सामाजिक होने की स्वतंत्रता
यही छ: विधा में स्वतंत्रता है इसमें निष्णात होने के फलस्वरुप :-
- मानवीय शिक्षा कार्य में स्वतंत्रता
- न्याय सुरक्षा कार्य में स्वतंत्रता