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क्लेश ही दास्यता है । यह अजागृति का प्रतीक है । उससे मुक्ति ही स्वतंत्रता सहज लक्षण है ।

दास्यता से मुक्ति हेतु ही आप्त पुरुषों के विधिवत् उपदेश हैं जो जीवन के कार्यक्रम एवं व्यवस्था के प्रेरणास्त्रोत है ।

दास्यता किसी की भी ऐच्छिक प्राप्ति अथवा ईष्ट नहीं है । उपदेश का तात्पर्य उपाय पूर्वक भ्रममुक्त होने का सूत्र व व्याख्या से है ।

स्वकर्म-परिपाक, संस्कार, अध्ययन एवं वातावरण ही परतंत्रता और स्वतंत्रता के कारण है । इन तीनों कारणों की व्याख्या निर्भ्रम स्थिति के लिये नियोजित होने योग्य प्रक्रिया का विश्लेषण “मानव व्यवहार दर्शन” में किया गया ।

भोगों में सुख भासता है - जिसकी निरंतरता नहीं यह प्रसिद्ध है ।

ज्ञानावस्था सहज प्रत्येक इकाई आनंदानुभूति तथा उसकी निरंतरता सहज इच्छुक है । बहुसंख्यक मानव विषयभोग में ही इसे पाना चाहते हैं, परिणामतः क्लेश है ।

ज्ञानावस्था सहज इकाईयों में क्रियाकलाप से आस्वादन एवं अनुभूति ही परिलक्षित होता है ।

शरीर मूलक आस्वादन में सुख मात्र भासता है, उसकी निरंतरता नहीं है । अनुभवमूलक विधि से सुख, शान्ति, संतोष, आनंद सहज निरंतरता है ।

अनुभूति केवल ब्रह्म में है । ब्रह्म ही सत्य है । ब्रह्म में जीवन एवं जगत शाश्वत् है । नियम, न्याय धर्म एवं सत्य सहज ही अनुभव है । संपूर्ण व्यवहार एवं क्रिया का नियंत्रण सत्य में है ।

जड़ प्रकृति की सत्यता सहज ज्ञान,चैतन्य सहज बोध एवं व्यापक सत्ता में अनुभव स्वयम् सिद्ध है ।

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