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होना पाया जाता है। इस वैभव के साथ यह भी स्वयंस्फूर्त होता है इसकी विशालता की आवश्यकता है। जैसे परिवार में परिवार समूह व्यवस्था की प्रवृत्ति स्वयंस्फूर्त होती है। इसी प्रकार परिवार समूह सभा ग्राम परिवार की विशालता दस के गुणन में होते हुए ग्राम सौभाग्य को प्रमाणित करने का उद्देश्य बन जाता है। क्योंकि समूचे ग्राम में कम से कम 10 परिवार समूह सभा से निर्वाचित सदस्य होगें। दस परिवार सभा अपना सौभाग्य प्रमाणित किये रहना स्वाभाविक रहता है। इन आधारों पर हर परिवार समूह सभा से एक एक व्यक्ति का निर्वाचन होना सहज हो जाता है। इस स्वयंस्फूर्त निर्वाचन से जन प्रतिनिधि अपने दायित्व, कर्तव्य से सम्पन्न, सजग प्रमाणित रहता ही है क्यों कि समझदार परिवार से ही जन प्रतिनिधि की उपलब्धि होना पाया जाता है। इसमें हर परिवार के समझदार होने की व्यवस्था, लोक शिक्षा और शिक्षा विधि से, मानवीय शिक्षा का बोध कराने की व्यवस्था सुचालित रहेगी ही। इस प्रकार से तीसरे सोपान के लिए दस जनप्रतिनिधि परिवार समूह सभा से निर्वाचित होकर ग्राम सभा के लिए उपलब्ध रहेंगे। इसके निर्वाचन की कालावधि को हर ग्राम सभा अपनी अनुकूलता के आधार पर अथवा सबकी अनुकूलता के आधार पर निर्णय लेगी। उस कालावधि तक मूलत: परिवार से निर्वाचित होकर परिवार समूह से निर्वाचित होकर ग्राम परिवार सभा कार्यक्रम में भागीदारी करने के लिए पहुँचे रहते है। इनके लिए कोई मानदेय या वेतन स्वीकार नहीं होता है। क्योंकि हर परिवार समृद्ध रहता ही है। समाधान समद्धि के आधार पर ही जनप्रतिनिधि निर्वाचन होना पाया जाता है। जब दसों जनप्रतिनिधि एकत्रित होते हैं ये सभी प्रतिनिधि हर कार्य करने योग्य रहते हैं। व्यवस्था कार्य में ऐसा कोई भाग नहीं रहेगा जिसे यह कर नहीं पायेंगे। दूसरा हर कार्य के लिए समय और प्रक्रिया को निर्धारित करने में समर्थ रहेंगे। इस शोध के आधार पर मानवीय शिक्षा-संस्कार में पारंगत जैसे एक गाँव में प्राथमिक शिक्षा का आवश्यकता तो रहता ही है उसमें पारंगत रहेंगे। न्याय-सुरक्षा कार्य में पारंगत रहेंगे। उत्पादन-कार्य में पारंगत रहेंगे। विनिमय कार्य में पारंगत रहेंगे। स्वास्थ्य संयम कार्य में भी पारंगत रहेंगे। प्राथमिक स्वास्थ्य विधा में सभी पारंगत रहेंगे।

हर समझदार परिवार में स्वास्थ्य-संयम विधा में सामान्य चिकित्सा ज्ञान, शरीर रचना ज्ञान, शरीर संतुलन का ज्ञान सम्पन्न रहता ही है। इतना ज्ञान हर परिवार एवं जनप्रतिनिधि में रहता है। कर्माभ्यास किसी में कम ज्यादा हो सकता है। इस विधि से हर प्रतिनिधि की मानसिकता सबके साथ तालमेल बनाए रखने के सूत्र व्याख्या में निष्णात रहेंगे। अतएव उक्त पांचों विधाओं में कृत, कारित, अनुमोदित कार्यों का अधिकार सम्पन्न रहते हैं। यही मौलिक अधिकार है। यही मानव अधिकार का प्रशस्त स्वरूप है। प्रशस्त स्वरूप का तात्पर्य पीढ़ी से पीढ़ी प्रेरणा पाने योग्य

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