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मुख्य मुद्दा है जिसको देखने वाले सभी इन तीनों कार्यों में नहीं है या ये तीनों कार्य मिला नहीं है ऐसे सभी इनके प्रवृत्तियों को देखकर अपने गरीबी को अधिमूल्यन करते हुए त्रस्त होता हुआ देखने को मिलता है। जनसंवाद में होना क्या चाहिये? इस पर निष्कर्षों को निकालने की आवश्यकता है। साथ में ऊपर कहे हुए विधाओं के अनुसार विश्लेषण आवश्यक है। इस प्रकार जनसंवाद विश्लेषण और निष्कर्ष के रूप में सार्थकता के अर्थ में प्रेरक होना आवश्यक है।

यह भी देखा गया है कि जहाँ तक अर्थ पक्ष है ज्यादा कम के रूप में ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों के परस्परता में संवाद, विचार, स्वीकृतियाँ है। इस पर सर्वेक्षण, निरीक्षण, अध्ययनपूर्वक यह तथ्य पाया गया कि यह संवाद केवल प्यास को बढ़ाने के अर्थ में ही हुआ। गणितीय भाषा में 2 है तो 4 चाहिए, 4 है तो 4000 चाहिये 4 अरब चाहिए यही प्यास है। प्यास संतुष्टि का अर्थ नहीं होती। अपने को कम होना पाते है उनके मन में यह भ्रम होता है कि ज्यादा धन जिसके पास है वह सुखी है जबकि वे ऐसे रहते नहीं है। उनका प्यास पीछे वाले से बहुत ज्यादा ही रहता है। जितना ज्यादा धन रहता है उतना ही ज्यादा (अनेक गुणा का) प्यास बनता है, ऐसा प्यास त्रासदी है। इसको हर व्यक्ति निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण कर सकता है चाहे गाँव हो, परिवार हो, बंधु हो, बांधव हो, पहचान का हो, पहचान का न हो। सब जगह यही पाते हैं। समुदाय की परस्परता से और देश-देश की, राज्य-राज्य की, परस्परता में भी यही प्यास का झंझट बना रहता है। जनप्रतिनिधि और जन सम्मानित व्यक्तियों में भी यह प्यास पायी जाती है। सभी संस्था और व्यक्ति लाभोन्माद से मुक्त नहीं है। लाभोन्माद का मतलब ही है, और चाहिये, और चाहिये और चाहिये। इसी का नाम प्यास है। धन की प्यास से पीड़ित आदमी संतुष्ट होना, सुखी होना समाधानित होना संभव है ही नहीं। इस प्रकार धन पिपासा हर व्यक्ति को त्रस्त किया ही है। इसी आधार पर हर संस्था भी इसी चक्र में फँसी हुई दिखाई पड़ती है। इन घटनाओं से हमें समझ में यह आता है कहीं न कहीं इसका तृप्ति बिन्दु तो चाहिए। धन पिपासा दो ही बिन्दु, सुविधा और संग्रह के अर्थ में देखने को मिलती है। इस क्रम में संस्थाएँ कहलाने वाले चाहे राज्य संस्था हो, धर्म संस्था हो, अथवा समाज सेवी संस्था हो, इन संस्थाओं में धन की संतुष्टि होती ही नहीं। सुदूर विगत से यह प्रक्रिया संपन्न होते आयी।

इस धरती पर अनेक स्थानों पर ऐसे खंडहर, इमारत, स्मारक दिखाई पड़ते हैं। और बड़े बड़े किले देखने को मिलते है ये सब अपनी सुविधा सुरक्षा और स्मरणार्थ की गयी रचनाओं की गवाही है। राज्य मानसिकता के काल में बड़े बड़े किले बना कर किले में निवास करने वालों

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