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पिण्डों के रूप में सजातीय-विजातीय विधि से भी अनेकानेक पिण्डों के रूप में हमें धरती पर देखने को मिलते है। यह पहचानने निर्वाह करने के रूप में ही आंकलित हो पाता है। यह परिणामों के आधार पर ही पहचानता निर्वाह करता हुआ देखने को मिलता है। अन्न-वनस्पतियाँ, हरियालियाँ अपने बीज-वृक्ष न्याय से पहचानने निर्वाह करने के कार्यक्रम को भले प्रकार से प्रस्तुत किये है। नीम के बीज से नीम वृक्ष, आम के बीज से ही आम वृक्ष होना विश्वसनीय है। ये सब संवाद चर्चा, परिचर्चा का मुद्दा है। हर संवाद में क्यों कैसे का उत्तर लक्ष्य और दिशा के सार्थकता में परिगणित होना पाया जाता है। हर प्रजाति की वनस्पति संसार बीजानुषंगीय विधि से पहचान-निर्वाह करने का प्रमाण विविध रचना के रूप में प्रस्तुत हो चुकी है। इस धरती पर दूब घास से लेकर गगन चुंबी वृक्षों तक छोटे से छोटे रूप में रचित काई से चलकर एक कोशीय बहुकोशीय रचनाएँ बीजानुषंगीय विधि से सार्थक हो चुके है। ये सभी रचनाएँ एक दूसरे के साथ सर्वाधिक संख्या में पूरक होना पाया जाता है। मृदा, पाषाण, मणि, धातुएँ, रसायन संसार के लिए पूरक होना ही संवाद का एक अच्छा मुद्दा है। पूरकता का तात्पर्य है कि एक स्थिति से दूसरे उन्नत स्थिति के लिए पूर्व स्थिति का होना आवश्यक है। रसायन संसार में रसायन द्रव्य अनेक प्रकार से अपने वैभव को विस्तार करते हुए उत्सवित रहता हुआ देखने को मिलता है। इसका सत्य यही है बहुत छोटे रचना से वृहद आकार की रचना रचित हो चुकी है। बड़े-बड़े वृक्षों के रूप में, छोटे छोटे पौधों के रूप में वनस्पति की रचनाएँ सर्व मानव के लिए दृष्टव्य है। ये जल थल दोनों स्थितियों में इस धरती पर स्पष्ट हुआ है। इन तथ्यों पर संवाद को विविध रूप में सम्पन्न किया जाना आगे पीढ़ी को बोधगम्य कराना संवाद का सार्थकता है। उसी के साथ लक्ष्य और सार्थकता को स्पष्ट कर लेना संवाद का प्रधान प्रयोजन है।

मानव व्यवहार और पूरकता :

जन चर्चा के मुद्दे में पूरकता एक मुद्दा है। पूरकता के आधार पर ही जनचर्चा द्वारा, संवाद द्वारा, स्पष्टीकरण द्वारा समाधान के छोर तक पहुँचते है। समाधान मानव परम्परा के लिए स्वीकृत आवश्यकता, प्रधान आवश्यकता अथवा परम आवश्यकता है। समाधान अपने में क्यों, कैसे का सहज उत्तर है। हर मुद्दे के साथ क्यों, कैसे, कितना का प्रश्न होता ही है। जितने भी क्यों की बात आती है या प्रश्न उठता है उसका उत्तर का आधार मूल कारण ही होता है। कैसे का उत्तर हम पाने के लिए दौड़ते हैं। प्रक्रिया, प्रणाली, पद्धति के सूत्रों के आधार पर प्रक्रियाएँ स्पष्ट हो जाती है। कितना का उत्तर, फल परिणाम और आवश्यकता की तृप्ति के अर्थ में स्पष्ट हो जाता

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