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जो अपने को सर्वश्रेष्ठ नहीं बताता और अपने कार्यक्रमों को सार्वभौम नहीं बताता अथवा सबकी जरूरत नहीं बताता।

हर राज्य राष्ट्रीय पर्व दिवस की पावनबेला में राज्य की अखंडता, सार्वभौमता, अक्षुण्णता का नारा अथवा जिक्र करते ही है। जबकि सन् 2000 के पहले दशक तक कोई ऐसा राज्य अथवा धर्म नहीं हुआ जिसका, अन्य धर्मों के साथ विरोध न हो, अथवा जो सबके लिए स्वीकार्य हो, ऐसा कोई धर्म ग्रंथ तैयार हो नहीं पाया। सभी अपने ढंग से श्रेष्ठता का दावा करते ही है। हर श्रेष्ठता की कसौटी है, जो सर्वमानव स्वीकृत हो जिसके फलन में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में प्रमाणित हो, स्वीकृत हो, और व्यवस्था के रूप में मानवीय शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन-कार्य, विनिमय कोष (लाभ हानि मुक्त), और स्वास्थ्य-संयम कार्य रूप में प्रमाणों का वर्चस्व वर्तमान हो। इस प्रकार अखंड समाज, सार्वभौमता का प्रयोजन स्पष्ट हो जाता है। इन प्रयोजनों के साथ ही इनकी निरन्तरता का वैभव होना पाया जाता है।

अखंड समाज में मूल्यों के आधार पर चरित्र और नैतिकता को प्रमाणित करना पाया जाता है। सार्थक संवाद के लिए यह ज्वलंत मुद्दा है। हर मानव सार्थक संवाद ही करना चाहता है। सार्थकता अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के रूप में और उसका फल परिणाम समाधान, समृद्वि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में स्पष्ट हो जाता है, सार्थक संवाद का प्रयोजन यही है।

सार्थकता अपने में एक मुद्दा है। मानव परम्परागत विधि से ही किसी न किसी भाषा में संवाद करता है। अर्थात् संवाद में भाषा का प्रयोग स्वाभाविक है। हर भाषा अपने में संवाद योग्य होना हर मानव को स्वीकार है। हर मानव किशोर अवस्था से ही किसी न किसी भाषा का अभ्यासी होता ही है। क्योंकि हर अभिभावक, अड़ोस-पड़ोस, बंधुजन संबोधन सहित भाषा प्रयोग करते ही है। शिशुकाल से ही बोलने का अभ्यास करता हुआ देखने को मिलता है। इसी क्रम में यह विश्वास सुदृढ़ होता है हर मुद्दे पर संवाद करने का तथा इस क्रम में एक दूसरे के साथ अपने अपने भाषा मर्यादा के साथ बातचीत करते हुए देखने को मिल ही रहा है। ऐसे वार्तालाप को किसी लक्ष्य या प्रयोजन के सिलसिले में नियंत्रित करने पर संवाद कहलाता है। यदि लक्ष्य और प्रयोजनों से जुड़ा न हो, ऐसे वार्तालाप को गपशप कहते हैं। हर सूचना भी प्रयोजन के अर्थ में स्वीकार होती है अन्यथा स्वीकार नहीं होती है। इस प्रकार सार्थकता, संवाद का आधार होना, गम्यस्थली होना स्पष्ट हो जाता है।

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